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Dr (Miss) Sharad Singh |
नवगीत
दर्द का पड़ाव
- डाॅ सुश्री शरद सिंह
पोर-पोर
दर्द का पड़ाव
कभी धूप कभी छांव।
तथाकथित अपनों के
चूर हुए वादे
स्याह कर्म वालों के
वस्त्र रहे सादे
ओर छोर
जन्मते तनाव
कभी पेंच कभी दांव।
टूटते घरौंदों में
थकन की कराहें
रोज़गार बिना सभी
बिखर गई चाहें
कोर-कोर
आंसू के घाव
कभी डूब कभी नाव।
भूख सने होंठों पर
रोटी के गाने
सबके सब दुखी यहां
सड़क, गली, थाने
जोर-शोर
ओढ़ते छलाव
कभी मोल कभी भाव।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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ओर छोर
ReplyDeleteजन्मते तनाव
कभी पेंच कभी दांव।
बहुत सही सामयिक रचना
नपे-तुले शब्दों में बहुत कुछ कह दिया शरद जी आपने ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग "Varsha Singh" में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट दिनांक 24.01.2021 गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग में आपका काव्य भी शामिल है।
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
सादर,
- डॉ. वर्षा सिंह
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हमेशा की तरह मन को छूते भाव।
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब शरद जी, टूटते घरौंदों में
ReplyDeleteथकन की कराहें
रोज़गार बिना सभी
बिखर गई चाहें...कितना भावप्रबल सत्य...
प्रभावशाली सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत सराहनीय
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