27 November, 2020

स्वप्न की रजाई | कविता | डॉ शरद सिंह

 

Swapna Ki Rajai - Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

प्रिय मित्रो, लीजिए जाड़े पर मेरी एक और कविता...
स्वप्न की रजाई
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- डॉ शरद सिंह

जाड़े की रात ने
सांकल खटकाई
शीत भी दरारों से
सरक चली आई
पक्के मकानों में
उपले, न गोरसी
हीटर के तारों से
लाल तपन बरसी
नींद मगर चाहे
स्वप्न की रजाई
और
कम्बल के धागों में
प्रीत की कताई।
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23 November, 2020

जाड़ों की रात में | कविता | डॉ शरद सिंह

जाड़ों की रात में ...
          - डॉ शरद सिंह

जाड़ों की रात में
लिहाफ़ में दुबके
किसी यादों से गरमाए सपने
नहीं चाहते हैं जागना
इसीलिए तो रातें
लम्बी हो जाती हैं 
जाड़ों में।
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17 November, 2020

पत्र ग़ैरों के | नवगीत | डॉ शरद सिंह

नवगीत
पत्र ग़ैरों के
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       - डॉ शरद सिंह

धूल पर 
   टिकते नहीं हैं 
       चिन्ह पैरों के ।

उंगलियों के बीच 
सूरज को दबाए 
रोशनी से 
कसमसाती नींद 
सिलवट छोड़ जाए 
   रास्ते बुनते रहे 
          संदर्भ सैरों के।

मौसमी मुस्कान 
होठों पर सहेजे 
आंसुओं से 
तरबतर रुमाल 
किसके पास भेजें 
डाकिया 
     लाया हमेशा 
           पत्र ग़ैरों के।
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15 November, 2020

दीपावली की शुभकामनाएं | डॉ शरद सिंह

जगमग करते 
दीपों जैसी
खुशियां लाए 
दीवाली।

सबका जीवन 
शुभ-लाभों से
समृद्ध कराए 
दीवाली।
- डॉ शरद सिंह

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13 November, 2020

रूपचतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं | डॉ शरद सिंह

रूपचतुर्दशी 2020 की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹
- डॉ शरद सिंह
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12 November, 2020

दीपोत्सव | गीत | डॉ शरद सिंह

गीत
दीपोत्सव
- डॉ शरद सिंह

दीप पर कत्थक अदाएं
नृत्यरत  हैं   वर्तिकाएं ।

हर क़दम पर गीत गाती
वायु की शीतल लहरियां
रोशनी   के   पंख  बांधे
झूमती है  आज  दुनिया

रात भी  नवगीत  गाए
और  तारे   गुनगुनाएंं ।

तम-कथाएं   कौन   बूझे
तारिकाओं  की   छटा  में
घुंघरुओं के स्वर खनकते
ज्योति की जगमग घटा में

सिद्धि की चाहत जगाएं
मंत्र   पढ़ती   हैं  दिशाएं।
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11 November, 2020

दिए बनकर जलेंगे | दीपावली गीत | डॉ (सुश्री) शरदसिंह

गीत
दिए बनकर जलेंगे
                   - डॉ (सुश्री) शरदसिंह

घोर तम में भी न हम गुम हो सकेंगे ।
हम दिवाली के दिए  बनकर जलेंगे ।

हो भले ही छल का जल खारा बहुत 
या,  हो  गहरी  स्वार्थ की धारा बहुत 
आस्था   के   सीप  का  मोती  बनेंगे 
हम दिवाली के  दिए  बनकर जलेंगे ।

दर्द का  इतिहास  ही  काफी नहीं है 
प्यार का  आभास  ही काफी नहीं है 
सत्य की, विश्वास की कविता लिखेंगे 
हम दिवाली  के दिए  बनकर जलेंगे ।

ये  अमावस  भी   ढलेगी,  भोर  होगी 
सूर्य की किरणों की जगमग डोर होगी 
चेतना  में   ज्योति  का  चंदन   मलेंगे 
हम दिवाली का दिया बनकर जलेंगे ।

श्रम न ठिठकेगा, न  हारेगा  कहीं भी 
मन प्रलोभन से न बहकेगा  कहीं भी 
संकल्प के पथ से  न अपने पग हटेंगे 
हम  दिवाली  के दिए  बनकर जलेंगे ।
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07 November, 2020

'शरद' ने पूछ लिया आज | ग़ज़ल | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल
'शरद' ने पूछ लिया आज...
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

कभी मिला, न गुमा, उसको  ढूंढते क्यों हो ।
खुद अपने आप से, बेवज़ह जूझते क्यों हो ।

ले जा के छोड़ दे यादों के एक जंगल में 
उस एक राह पे हरदम ही घूमते क्यों हो ।

ना आएगा वो मनाने किसी भी हालत में 
ये जान कर भी हमेशा यूं रूठते क्यों हो ।

वो पंछियों के भरोसे, क्या भाग बांचेगा 
जिसे पता ही नहीं उससे पूछते क्यों हो ।

'शरद' ने पूछ लिया आज अपने ख़्वाबों से 
ज़रा सी  बात  पे हर  बार  टूटते क्यों हो ।
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मित्रो, मेरी यह ग़ज़ल आज 'युवाप्रवर्तक' में प्रकाशित हुई है। इसे आप युवाप्रवर्तक के इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं -

03 November, 2020

स्त्रीपाठ - 5 | स्त्री प्रकृति | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता

 

Stri Paath - 5 - Stri Prakriti - Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


स्त्रीपाठ - 5


स्त्री प्रकृति
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वृक्ष
जितना ऊपर दिखाई देता है
उतना ही होता है
भूमि में, भीतर

जितनी शाखाएं
उतनी जड़ें
जितने पत्ते
उतनी उपजड़ें
तभी तो थामें रहता है
दृढ़ता से
अपने समूचे आकार को
जो आकार नहीं
उसका परिवार है वस्तुतः

स्त्री भी तो आकार नहीं
परिवार है
चाहे विवाहित हो या अविवाहित
समर्पित अपनों के लिए
दृढ़ता से
ठीक वृक्ष की तरह

वृक्ष और स्त्री
दो पहलू हैं
एक ही प्रकृति के
बिना किसी लिंगभेद के।

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