Sharad Singh
मित्रों का स्वागत है - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
13 May, 2022
ग़ज़ल | मंज़र सारे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
12 May, 2022
कविता | मेरी भावनाएं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता | बहुत छोटा है प्रेम शब्द | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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कविता | @कंडीशन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
28 April, 2022
कविता | वह चूहानुमा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
कविता
चूहानुमा
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक विशेषता है
मनुष्य योनि में हो कर भी
चूहा होना,
वह भी
जहाज का चूहा
जो जहाज के
डूबने की
आशंका में ही
छोड़ देता है
जहाज को
मुझे नहीं लगता
कि कर सकता है ऐसा
मनुष्य
यदि उसके भीतर है
सच्ची मनुष्यता
होने को तो ...
सुकरात को
विष का प्याला
दिया था मनुष्यों ने ही
ब्रूटस भी मनुष्य ही था
जिसने सीजर के पीठ पर
भोंका था छुरा
वह मनुष्य ही था
जिसने
ज़हर पिलाया मीरा को
और परित्याग कराया सीता का
वह मनुष्य ही था
जिसने
बापू गांधी के सीने मेंं
उतार दी गोलियां
और करा दी थीं हत्याएं
जलियांवाला बाग में
अवसरवादिता
लिबास बदलती है
और ढूंढ लेती है
नित नए आका
कभी सत्ता
तो कभी जिस्म
तो कभी ताक़त
कभी ये सभी
ज़्यादातर राजनीति में
लेकिन अब
चूहानुमा
मानवीय नस्ल
राजनीति से
आ गई है
प्रेम में भी,
छोड़ जाती है साथ
संकट की घड़ी में
प्रेम रह जाता है
हो कर आहत
एक
डूबे जहाज की तरह
कृतघ्न चूहा क्या जाने
रच देते हैं प्रेम का इतिहास
टूटे /डूबे जहाज भी
और निभाते हैं प्रेम
अनंत गहराइयों में
अनंत काल तक।
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23 April, 2022
कविता | अपराध | डॉ शरद सिंह | प्रजातंत्र
10 April, 2022
ग़ज़ल | हमको जीने की आदत है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नवभारत
"नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में आज 10.04.2022 को "हमको जीने की आदत है" शीर्षक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
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ग़ज़ल | हमको जीने की आदत है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नवभारत
अपने सुघड़ उजालों को तुम, रक्खो अपने पास।
हमको जीने की आदत है, काले दिन, उच्छ्वास।
चतुर शिकारी जाल डाल कर बैठा सारी रात
सपनों को भी लूट रहा है, बिना दिए आभास।
बढे़ दाम की तपी सलाखें, दाग रही हैं देह
तिल-तिल मरता मध्मवर्गी, किधर लगाए आस।
बोरी भर के प्रश्न उठाए, कुली सरीखे आज
संसद के दरवाज़े लाखों चेहरे खड़े उदास।
जलता चूल्हा अधहन मांगे, उदर पुकारे कौर
तंग ज़िन्दगी कहती अकसर-‘तेरा काम खलास!’
अनावृष्टि-सी कृपा तुम्हारी, और खेतिहर हम
धीरे-धीरे दरक चला है, धरती-सा विश्वास।
सागर बांध लिया पल्लू में, और पोंछ ली आंख
मुस्कानें फिर ओढ़-बिछा लीं, बना लिया दिन ख़ास।
तड़क-भड़क की इस दुनिया में, करें दिखावा लोग
फिर भी अच्छा लगता हमको, अपना फटा लिबास।
यही धैर्य का गोपन है जो, रहे ‘शरद’ के साथ
आधा खाली मत देखो, जब आधा भरा गिलास।
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