04 January, 2021

छत पर पड़ी दरार | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आंसू बूंद चुए | नवगीत संग्रह

Dr (Miss) Sharad Singh


नवगीत

छत पर पड़ी दरार

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


टूटी खिड़की

उखड़े द्वार

छत पर पड़ी दरार।


लालटेन की

बाती जैस

धुंआ-धुंआ तक़दीर हुई

फटी चादरें

सीने में ही

उंगली में चुभ गई सुई


खाली जेबें

जागी आंखें

सपने लगें कटार।


बूढ़ी आंखों

हुआ मोतिया

दुनिया मकड़ी जाल लगे

निरा अपरिचित

जैसे मिलते

जन्मों से जो रहे सगे


घर के रिश्ते

बैर भुनाते

टूटे सभी करार।


कभी तो मुट्ठी

गरम रहेगी

बहना की शादी होगी

शायद चंगा

हो जाएगा

क्षुधा-तपेदिक का रोगी


कटे पेड़ का

हरियल सपना

हमको मिला उधार।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah




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