मृतक कथाएं
- डाॅ सुश्री शरद सिंह
घिसी हथेली की रेखाएं
जाने कहां-कहां ले जाएं।
घर के बाहर
सिर के ऊपर
सूरज बिना तपन
अंगुल-अंगुल
उभर गया अब
मन का सूनापन
अपनेपन का दाग़ दिखा कर
रिश्ते किरच हो जाएं।
कल की बातें
सपन दिखाते
जाने गईं किधर
पोर-पोर में
रचे-बसे हैं
सूखे फूल इतर
नेह डायरी के पृष्ठों पर
लिखी हुई हैं मृतक कथाएं।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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