Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
चार क़िताबें पढ़ कर
- डाॅ सुश्री शरद सिंह
चार क़िताबें पढ़ कर, दुनिया को पढ़ पाना मुश्क़िल है।
हर अनजाने को आगे बढ़, गले लगाना मुश्क़िल है।
जब से उसने मुंह फेरा है और हुआ बेगाना-सा
तब से उसके दर से हो कर आना-जाना मुश्क़िल है।
सबको रुतबे से मतलब है, मतलब है ‘पोजीशन’ से
ऐसे लोगों से, या रब्बा! साथ निभाना मुश्क़िल है।
शाम ढली तो मेरी आंखों से आंसू की धार बही
अच्छा है, कोई न पूछे, वज़ह बताना मुश्क़िल है।
रात-रात भर तारे गिनना, बीते दिन की बात हुई
अब तो सीलिंग के पंखे से आगे जाना मुश्क़िल है।
मन की चिड़िया पंख सिकोड़े बैठी है जिस कोटर में
‘शरद’ उसे अब तिनका-तिनका और सजाना मुश्क़िल है।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह ‘पतझड़ में भीग रही लड़की’ से)
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नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रवीन्द्र सिंह यादव जी,
Deleteहार्दिक आभार कि आपने मेरी ग़ज़ल को चर्चा मंच में शामिल किया है। यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपको🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
बहुत अच्छी, बहुत प्रभावी ग़ज़ल कही है शरद जी आपने । अभिनंदन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🙏
Deleteमेरी पोस्ट्स पर सदा स्वागत है💐
प्रभावी रचना .
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रतिभा सक्सेना जी 🌹🙏🌹
Deleteसबको रुतबे से मतलब है, मतलब है ‘पोजीशन’ से
ReplyDeleteऐसे लोगों से, या रब्बा! साथ निभाना मुश्क़िल है।
सुंदर रचना ।
सादर।
हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteदिली शुक्रिया यशवंत माथुर जी 🌹🙏🌹
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद गगन शर्मा जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह!बेहतर 👌
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹
Deleteमुग्ध करती रचना।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया शांतनु सान्याल जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत सुंदर खूबसूरत ग़ज़ल हर शेर मुकम्मल रेशमी एहसास के साथ।
ReplyDeleteउम्दा।
बहुत प्यारी टिप्पणी 🙏
Deleteहार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🙏🌹🙏
शानदार...
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