Tohta Hai Giddha - Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh
06 जनवरी यानी ''युद्ध अनाथों के विश्व दिवस'' पर को समर्पित पढ़िए मेरी कविता "टोहता है गिद्ध" ....
टोहता है गिद्ध
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
लिप्सा से जन्मा युद्ध
नहीं दे सकता
रोटी, पानी और घर।
एक उजाड़ संसार का देवता है युद्ध
ध्वस्त गांवों, कस्बों, शहरों
में अट्टहास करता
रक्त के फव्वारों में नहाता
मांओं की लोरियों को रौंदता
बच्चों की किलकारियों को डंसता
अल्हड़ लड़कियों की उन्मुक्त खिलखिलाहट को
चीत्कारों में बदलता
लोककथाओं के राक्षसों से भी
अधिक भयानक
युद्ध
एक गिद्ध है
जो टोहता है विभिषिका को
लाशों को
और बच रहे उन अनाथों को
जो कहलाते हैं शरणार्थी।
इसी धरती के वासी
इसी धरती पर बेघर
युद्ध नहीं चाहती मां
युद्ध नहीं चाहता पिता
युद्ध नहीं चाहते नाना-नानी
युद्ध नहीं चाहते दादा-दादी
युद्ध नहीं चाहते बच्चे
फिर कौन चाहता है युद्ध?
वे जिन्हें नहीं होना पड़ता अनाथ
न बनना पड़ता है शरणार्थी
और न नहाना पड़ता है रक्त से
एक अदद निवाले, एक सांस या एक स्वप्न के लिए।
युद्ध एक आकांक्षा है
कपट राजनीतिज्ञों के लिए
युद्ध एक उन्माद है
शक्तिसम्पन्नता के लिए
जबकि
युद्ध एक स्याह अध्याय है
इंसानियत के लिए
युद्ध दुःस्वप्न है
अनाथ शरणार्थियों के लिए।
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सचमुच अत्यंत मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी कविता
ReplyDeleteसाधुवाद 🌹🙏🌹
मन को भीतर तक कचोट देने वाली रचना | बहुत सुन्दर |
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