31 December, 2023

शायरी | नए साल में | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कोई  भूखा   न  सोये   नए साल में
सबको  रोटी  मिले इस नए साल में
है 'शरद' की दुआ दर्द मिट जाएं सब
टीसते   जो   रहे   हैं    गए साल में
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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शायरी | बदलेगा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

माह बदलेगा, साल बदलेगा।
क्या कभी हालचाल बदलेगा?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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30 December, 2023

शायरी | लिक्खोगे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल कहोगे तो दिल का बयान लिक्खोगे
सुकूं लिखोगे मगर  फिर  उफ़ान लिक्खोगे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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27 December, 2023

शायरी | चाहतों का समुन्दर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ख़ामोश चाहतों का समुन्दर लिए हुए
अरसा गुज़र गया है ख़ुद को जिए हुए
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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25 December, 2023

शायरी | याद की अंगीठी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

याद की अंगीठी में जलते अंगार हैं
रिश्ते पर सर्द हैं, चुभते कुछ ख़ार हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
(*ख़ार = कांटे)

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22 December, 2023

शायरी | सर्दी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

चुभ  रहे  हैं  शीत के  नेज़े* नुकीले
रात की   सर्दी  अलावों  में  घुली है
लो,ठिठुर कर हो गया है चांद आधा
चांदनी  भी  बर्फ़  से  जैसे  धुली है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
(*नेज़े= भाले)

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21 December, 2023

शायरी | सर्द रात | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सर्द  रात का  ठंडापन  उनसे पूछो
जो फुटपाथों  के  दामन में  सोते हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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19 December, 2023

शायरी | बर्फ़ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

धूप की कतरनें भी ठंडी थीं
रात भी बर्फ़ बन के गुज़रेगी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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18 December, 2023

शायरी | झूठ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

तुम्हारे झूठ भी सच मान कर चलने लगे थे,
मगर अब सच कहोगे तो यक़ीं कर ना सकेंगे।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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16 December, 2023

शायरी | बेवफ़ाई | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

यक़ीनन है नहीं आसां, मगर हम मुस्कुराते हैं 
किसी की बेवफ़ाई को सलीके से  निभाते हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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15 December, 2023

शायरी | रात | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

रात इक स्याह परिन्दे की तरह
मेरे  घर   की  मुंडेर  पर   बैठी
उसको देखा तो याद आया कुछ
इस वज़्ह से  है  नींद भी रूठी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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14 December, 2023

शायरी | कुछ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कुछ  दोस्ती  के  क़र्ज़ हैं,  कुछ  दुश्मनी  उधार।
कुछ पल ख़ुशी के दर्ज़ हैं, कुछ आंसुओं की धार।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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13 December, 2023

शायरी | आसमां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

उसकी  यादें  हैं  या  सितारे हैं
दिल का है आसमां भरा उनसे
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शायरी | आसमां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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शायरी | वज़ह | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कोई तो वज़ह बता दे मुझको
ज़िन्दगी  बेवज़ह-सी   लगती है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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12 December, 2023

शायरी | ज़िंदगी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ये ज़िंदगी तो बड़ी अजनबी-सी लगती है
कभी भली तो कभी ये बुरी-सी लगती है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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10 December, 2023

शायरी | हद | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

इम्तिहानों  की  कोई  हद   होगी
पर ख़यालों की कोई हद ही नहीं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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शायरी | यादें | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

नींद आ जाए गर,तो अच्छा है
वरना  हम  हैं,  तमाम   यादें हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शायरी | यादें | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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08 December, 2023

शायरी | दरमियां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दरमियां रात  चली  आई  है
सुब्ह होने दो, मिलेंगे फिर से
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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07 December, 2023

शायरी | सुकून | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

एक मैसिज या  इमोजी आता 
इस बहाने  सुकून मिल जाता 
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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कविता | धुंध | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

धुंध
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

उदास रात
और अनमनी भोर की
सौगात है धुंध

मन के गलियारे में
छाती है जब धुंध
नहीं काम आता
तब
विचारों का कोई 
फॉग-लैम्प,
टकराती हैं भावनाऐं
एकांतिक अंधेरी सुरंग में
छल-कपट के
छोटे-बड़े वाहनों से,
फूटते हैं उम्मीदों के कांच
भोथरी किरचें करती हैं चोट
पर नहीं दिखते जख़्म

दिल की भट्ठी से
उठती हुई आग
बना देती है
आंसुओं को भाप
एक और धुंध
ले लेती है 
अपनी आगोश में

एक और हादसा
दर्ज़ होता है
ज़िन्दगी के रोज़नामचे में,
एक और ख़बर 
जिसे कोई नहीं पढ़ता
धुंध बखूबी
डाले रखती है पर्दा

जीने से पहले
मरने के बाद ही नहीं
साथ देती है धुंध
बहुत कुछ झेल जाने में।
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06 December, 2023

शायरी | घर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मैं  और  मेरी  तन्हाई  भर  रहते हैं
ऐसे वीरां घर को, क्या घर कहते हैं?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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05 December, 2023

शायरी | रिश्तों की तासीर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पत्ते  पीले  होकर  सब्ज़  नहीं  होते
इनसे समझो रिश्तों की तासीर कभी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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04 December, 2023

शायरी | कभी नहीं आया | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हमें चराग़  जलाना  कभी  नहीं आया
यही वज़्ह कि अंधेरों ने है तरस खाया
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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03 December, 2023

शायरी | सीख लिया | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

नाउम्मीदी  में  भी   हंसना  सीख लिया
समझो उसने ख़ुद ही जीना सीख लिया
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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02 December, 2023

शायरी | रात | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ख़ामोशी की चादर ओढ़े सोई रात
इसके पहले फूट-फूट कर रोई रात
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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01 December, 2023

शायरी | आजकल | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आजकल कुछ हो गया हालात को
स्याह लगती पूर्णमासी  आजकल।
कंदराएं  अब  भली  लगने लगीं
हो गया मन आदिवासी आजकल।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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28 November, 2023

शायरी | तुम शहरी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

तुम शहरी, महानगर जैसे हो
हम ही  हैं  छोटी तहसील से।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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शायरी | अकेले हैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कहने भर को अपनेपन के मेले हैं।
सब अपने साये के साथ अकेले हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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26 November, 2023

शायरी | ज़िंदगी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कट रहे हैं दिन   सुपारी की तरह
ज़िन्दगी लगती, उधारी की तरह
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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25 November, 2023

शायरी | इक दिन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हमको   पाठ   पढ़ाने   वालो
वक़्त पढ़ेगा तुमको इक दिन
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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24 November, 2023

शायरी | हम ही नादान | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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22 November, 2023

कविता | चाहने पर भी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

चाहने पर भी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दिए की लौ हूं
एक दिन बुझ जाऊंगी

बुझने पर
फिर
नज़र नहीं आऊंगी

किसी के 
चाहने पर भी।
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21 November, 2023

शायरी | पता पूछ कर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


ग़मों ने हमारा पता ढूंढ कर
हमें मुस्कुराना सिखा ही दिया।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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19 November, 2023

कविता | ज़िंदगी की एनाटॉमी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ज़िंदगी की एनाटॉमी
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आग के दरिया पर
नहीं बनते लकड़ी के पुल
पर पेट के तंदूर पर
तनी रहती है
काग़ज़ी चमड़ी
सूखी पसलियों
और पेल्विक के बीच,
सांसों की धौंकनी के 
बावज़ूद
टिकी रहती है 
ताज़िन्दगी
भूख को मुंह चिढ़ाती
ऐंठती, सिकुड़ती
दहन के ऊपर, दाह से परे,
क्या है कोई 
इससे भी बड़ा चमत्कार
ज़िंदगी की एनाटॉमी में?
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08 November, 2023

कविता : स्त्रीपाठ - 1 : एक स्त्री में देवीत्व - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
स्त्रीपाठ - 1 : 
एक स्त्री में देवीत्व 
        - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कभी पढ़ो एक स्त्री को
दुर्गा सप्तशती की तरह
तब एहसास होगा 
एक स्त्री में 
देवीत्व का।

कभी देखो एक स्त्री को
मंगलदीप में प्रदीप्त
बाती की तरह
तब दिखेगा रूप
एक स्त्री में 
देवीत्व का।

कभी महसूस करो
एक स्त्री के अस्तित्व को
पुरुषवादी चश्मा उतार कर,
तब कहना-
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'
क्योंकि स्त्री में देवीत्व है
स्त्री के रूप में।
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06 October, 2023

कविता | एक अधपढ़ी किताब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
एक अधपढ़ी किताब
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

एक अधपढ़ी किताब
रखी है 
मन की शेल्फ में

मुड़ा है 
उस पन्ने का कोना
पढ़ने के लिए
फिर कभी
वहीं से

नहीं आया
वह 'फिर कभी'
आज तक
जबकि
ज़िंदगी 
चली आई है
उस मुड़े हुए कोने से
दूर
बहुत दूर

फिर भी 
कुछ किताबें
नहीं दी जा पाती हैं
किसी को भी
न किसी पढ़ने वाले को
न पुस्तकालय को
न रद्दी वाले को

तब तो और भी नहीं
जब हो वह किताब
अधपढ़ी।
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05 October, 2023

शायरी | तुझसे जवाब मांगूंगी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मर के  तुझसे जवाब मांगूंगी
अपने ग़म का हिसाब मांगूंगी
तू है दाता तो क्यूं लिया मुझसे
देख, तुझसे वो  ख़्वाब मांगूंगी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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01 October, 2023

शायरी | ख़्वाब भी वीरां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शायरी | ख़्वाब भी वीरां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

जिन्हें मिली है मुहब्बत, उन्होंने की होगी
हमें तो  ख़्वाब भी  वीरां  मिले हमेशा से।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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17 September, 2023

शायरी | रामकहानी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शायरी | रामकहानी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
कैसे लिख दें  रामकहानी, 
लिखने वाली बात नहीं।
नभ-गंगा  हैं  भीगी  आंखें, 
पानी भरी परात  नहीं। 
खण्ड काव्य न, महाकाव्य है 
और न कोई गीत-ग़ज़ल
चूड़ी  जैसी  पीर  हमारी,  
अंत नहीं, शुरुआत  नहीं।
        - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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16 September, 2023

कविता | अस्तित्वहीन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अस्तित्वहीन

 - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मैं क्या हूं?
कुछ भी तो नहीं
शून्य से भी अधिक
अस्तित्वहीन

शून्य की आकृति
वज़न बढ़ाती जाती हैं
संख्याओं का
मैं नहीं

शून्य अनंत है
अथाह है
असीम है
मैं नहीं

शून्य बेहतर है
मुझसे
ज्ञान शून्यता
सर्वशक्तिमान है, पूजित है
मैं नहीं

मुझे क्षमा करना 
मेरी बौद्धिक शक्तियों !
तुमने तो चाहा 
किंतु मैं 
नहीं बन सकी बेहतर शून्य से ।
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05 September, 2023

शायरी | न ऐतबार रहा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

किसी भी बात पे अब तो न ऐतबार रहा
उस एक शख़्स पे वादा, वफ़ा उधार रहा
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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24 August, 2023

प्लीज़ | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

असंख्य तारे हैं आसमान में
कैसे पहचानूं तुम्हें?
अब करने लगा है व्याकुल
धरती पर बेगानापन
एक संकेत दे दो
टिमटिमा दो
प्लीज़ ...😢
   - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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19 August, 2023

शायरी | नींद के गांव में | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

रतजगा  हो  गया  नींद के गांव में
याद अंगार बन कर  दहकती रही
नीम ख़ामोश गलियां रही देखतीं
एक परछाई  यूं  ही भटकती रही
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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17 August, 2023

शायरी | मोहब्बत में | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मोहब्बत में शरारत का मज़ा कुछ और होता है।
कहा इक ने तो दूजे ने सुना कुछ और होता है।
यही तो लुत्फ़ है ख़ामोश रह  कर  देखने  में  सब,
कि,दुनिया और कुछ समझे, हुआ  कुछ  और  होता है।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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12 August, 2023

कविता | सहेली | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सहेली
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक शाम
मेरे बाजू में
बैठी थी अभी
रात आते ही
चली गई
छोड़ कर
और उतर आई
खूंटी पर टंगी उदासी
सगी सहेली की तरह
साथ देती है
रोज ही।
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06 August, 2023

शायरी | मंज़िल | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हम तो  बहता  पानी ठहरे
अपनी  राह  बना  ही लेंगे।
बाधाएं तुम खड़ी करो, पर
हम तो मंज़िल तक पहुंचेंगे।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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27 July, 2023

शायरी | वो न आए तो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वो न आए तो ये उसकी मर्ज़ी
हम तो ख़्वाबों में उसे पाते हैं।
है गिला और ना शिकवा कोई
अपनी  तनहाई  जिए जाते हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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21 July, 2023

शायरी | इंसा बिकते हैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


अर्ज़ है -
चौपड़ बिछी हुई है, पासे फिंकते हैं।
राजनीति के हाथों,  इंसा बिकते हैं।
चीरहरण पर धर्मराज की ख़ामोशी
नग्न देह पर भी,स्वारथ ही दिखते हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
 
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18 July, 2023

शायरी | कभी सोचा न था | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कभी सोचा न था, ये ज़िन्दगी, 
यूं ट्रेजडी बन जाएगी ।
सभी हो जाएंगे रुख़सत, 
हमें इक मौत भी न आएगी ।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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