29 January, 2021

चैन है प्रवासी | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh


नवगीत

चैन है प्रवासी

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


भीड़ में उदासी

ज़िन्दगी

बूंद-बूंद प्यासी।


धुंआ-धुंआ

उजियारा

कलछौंही लालटेन

उंगली की 

पोर से

छूट गई पेन


नेह भी कपासी

ज़िन्दगी

हो गई धुंआ सी।


पोर-पोर

पैनापन

यादों के जाल में

तैर गया

चेहरा

नयन ताल में


देह भी रुंआसी

ज़िन्दगी

है गहन व्यथा सी।


द्वार-द्वार

टूट गए

शुभलाभी सातिए

भीत की

दीवार ने

असगुन रचा लिए


चैन है प्रवासी

ज़िन्दगी

रह गई ज़रा-सी।

-----------

(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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6 comments:

  1. इन चंद लफ़्ज़ों में बड़ा दर्द छुपा है शरद जी ।

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    1. दिली शुक्रिया जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹

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  2. धुंआ-धुंआ
    उजियारा
    कलछौंही लालटेन
    उंगली की
    पोर से
    छूट गई पेन...
    नेह भी कपासी
    ज़िन्दगी
    हो गई धुंआ सी।
    अत्यंत मार्मिक व भावपूर्ण रचना।।।।।। आपकी लेखनी में एक निरंतरता व नैसर्गिक प्रवाह सा होता है, माँ सरस्वती की कृपा सदैव आप पर बनी रहे।

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    1. हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी 🌹🙏🌹

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  3. चैन है प्रवासी
    ज़िन्दगी
    रह गई ज़रा-सी।..बिल्कुल सच.. इन दो पंक्तियों में पूरी कविता का मर्म छुपा है...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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