29 September, 2020

अपने दिल की डायरी | डाॅ शरद सिंह | ग़ज़ल | वर्ल्ड हार्ट डे 20.09.2020 पर

 


ग़ज़ल : वर्ल्ड हार्ट डे पर - डाॅ शरद सिंह

खोल दें हम अपने दिल की डायरी।
फिर करें कुछ कच्ची-पक्की शायरी।


बोझ लें हम क्यूं भला, हर बात का
ज़िंदगी झिलमिल करें ज्यों फुलझरी।


आलमारी में रखे कुछ शब्द ढूंढे
फिर करें बातों में कुछ कारीगरी।


बोतलों के जिन्न-सी हर दुश्मनी
भूल सब आओ करें कुछ मसखरी।


कह रही सब से 'शरद', तुम भी सुनो
दिल की ख़ातिर भी रखो कुछ बेहतरी।

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24 September, 2020

मेरी पलक से । ग़ज़ल । डाॅ शरद सिंह

 

Ab Sochati Hun .. Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh

मेरी पलक से ... ग़ज़ल

- डाॅ शरद सिंह


मेरी पलक से ख़्वाब का काजल चुरा लिया।

रातों को  जागने की सज़ा  यूं सुना दिया।


वो शख़्स इस क़दर है ख़फ़ा, क्या बताऊं मैं

लिक्खी हुई  ग़ज़ल पे  सियाही गिरा दिया।


तनहाइयों की  राह में  चलती  ये ज़िन्दगी

इक हमसफ़र की चाह ने मीलों चला दिया।


मेरे खि़लाफ़ दर्ज़  मुक़द्दमा है  इन दिनों

अब सोचती हूं, आईना क्यूं कर दिखा दिया।

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21 September, 2020

कविता । एक पत्थर । डाॅ शरद सिंह

 

Ek Patthar - Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

एक पत्थर

दरक जाती हैं भावनाएं

बिखर जाते हैं शब्द

कांच की तरह 

टूट कर,

जब 

उस पर फेंकता है कोई

छल-छद्म का एक 

पत्थर

मुस्कुराहट के मुखौटे 

तले

अपनत्व का लबादा ओढ़ कर

विश्वास की ओट से।

- डाॅ शरद सिंह

19 September, 2020

ग़ज़ल | कोरोना से बच कर रहिए | डॉ शरद सिंह

मित्रो, कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए निवेदन स्वरूप मेरी ग़ज़ल आज #युवाप्रवर्तक में प्रकाशित हुई है...साझा कर रही हूं...
हार्दिक धन्यवाद युवाप्रवर्तक !!!
 ग़ज़ल
कोरोना से बच कर रहिए
         - डॉ शरद सिंह

सिर्फ़ हमारी ग़लती से है कोरोना हम पर भारी।
अगर मानते गाईड लाईन तो न रह पाता ये ज़ारी।

वक़्त अभी भी है, हम सम्हलें, घर से व्यर्थ नहीं निकलें
फिर देखेंगे कोरोना की, हो जाएगी विदा सवारी।

अगर निकलना पड़े काम से, मास्क हमेशा ही पहनें
निश्चित दूरी को अपना कर निभा लीजिए रिश्तेदारी।

"शरद" निवेदन करती है ये, कोरोना से बच कर रहिए
सावधान हों रहें सुरक्षित, दूर रहेगी मुश्क़िल सारी।

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12 September, 2020

कोशिश करते तो सही | डॉ. शरद सिंह | कविता



कोशिश करते तो सही 

- डॉ. शरद सिंह

    

तुम रखते मेरी हथेली पर 

एक श्वेत पुष्प

और वह बदल जाता 

मुट्ठी भर भात में

तुम पहनाते मेरी कलाई में 

सिर्फ़ एक चूड़ी

और वह ढल जाती

पानी की गागर में

एक क़दम तुम बढ़ते एक क़दम मैं बढ़ती

दिन और रात की तरह हम मिलते 

भावनाओं के क्षितिज पर

तुम रखते मेरे कंधे पर अपनी उंगलियां 

और सुरक्षित हो जाती मेरी देह

तुम बोलते मेरे कानों में कोई एक शब्द

और बज उठता अनेक ध्वनियों वाला तार-वाद्य

सच मानो, 

मिट जाती आदिम दूरियां

भूख और भोजन की

देह और आवरण की

चाहत और स्वप्न की

बस,

तुम कोशिश करते तो सही।

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