29 June, 2017

सोहणी की किस्मत में .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


सोहणी की किस्मत में
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वही आकर्षण, वही प्यार
वही सपनों का संसार
वही सीपी-सा गोपन, वही मोती-सा आब
वही समय की धारा, वही उफनती चिनाब
वही आंधी, वही तूफान
वही पानी, वही ढहता मकान
वही दुनिया, वही रीत-रिवाज़
वही कल था वही आज
वही ईर्ष्या, वही जलन
वही चाह की तपन
वही माही से मिलने को मन अड़ा
वही हाथ आया कच्चा घड़ा
डूबना ही तो है लिखा है
सोहणी की किस्मत में
फर्क़ सिर्फ़ इतना -
कि इस बार घड़ा बदला है
किसी और ने नहीं
खुद माही ने !

18 June, 2017

पिता ... .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


पिता
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आयताकार फ्रेम
और काले मोटे काग़ज़ के एल्बम पर
चिपकी हुई
देखी है जो तस्वीर
वही तस्वीर देखी है अकसर
मां के आंसुओं में

नहीं है वह सिर्फ़ एक बेजान तस्वीर
वह तो हैं पिता मेरे
मां, दीदी और मेरी स्मृतियों में जीवित

मेरी नन्हीं मुट्ठी में गरमाती है
आज भी
उनकी मज़बूत उंगली
जो चाहती थी
मैं सीख जाऊं चलना, दौड़ना, उड़ना
और जूझना इस संसार से
यही तो चाहते हैं सभी पिता
शायद ....


- डॉ शरद सिंह

HappyFathersDay

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15 June, 2017

पृथ्वी भी मेरी तरह .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


पृथ्वी भी मेरी तरह
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हां, मैं हूं नॉस्टैल्जिक
किन्तु बोहेमियन भी
अपनी सारी पीड़ाओं से बाहर घूमती
बगल में दबाए यादों की गठरी
क्योंकि संभव नहीं है फेंकना यादों को
यादें ही तो हैं जो मुझको
मिलाती रहती हैं मुझसे
किसी आईने की तरह
कि सजी थी मैं भी कभी
किसी के लिए
लगा कर माथे पर चांद
ओढ़कर किरणें
पृथ्वी की तरह
इसीलिए शायद
बोहेमियन है पृथ्वी भी मेरी तरह
और कुछ-कुछ
नॉस्टैल्जिक भी।


- डॉ. शरद सिंह

1- नॉस्टैल्जिक = यादों के सहारे जीने वाली
2- बोहेमियन = घुमन्तू 


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14 June, 2017

कभी तो ठहरो ... डॉ. शरद सिंह


Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


कभी तो ठहरो
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कल तुम फिर छोड़ गए मुझे
रीती हुई चाय की प्याली की तरह
न भाप, न तरल
न उष्मा, न ऊर्जा
बेहिसाब थकन
मन की टूटन
बस, कुछ धब्बे तलछट में
एक धब्बा किनारे पर
होठों का
वही होंठ जिनसे कहा था तुमने
‘‘फिर मिलेंगे, जल्दी ही’’

कभी तो ठहरो,
भर जाने दो प्याली फिर से
और फिर से उठने दो
गर्म भाप विचारों की।

- डॉ. शरद सिंह

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प्रेम ... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


प्रेम
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उसने
उसकी
कलाई को छुआ
और उसे पढ़ लिया
पूरा का पूरा

08 June, 2017

छपे हुए शब्द ... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


छपे हुए शब्द
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छपी हुई किताबें
नहीं हैं कम्प्यूटर
कि गिरने लगें उसके अक्षर
किसी वायरस के कारण

पीले पड़ने और टूटने के बाद भी
सहेजे रहते हैं पन्ने
किताबों की आत्मा को

जैसे मिस्र के रेगिस्तानों में खड़े पिरामिड
कच्छ के खारे पानी में डूबी द्वारका
या फिर
दिल के सबसे सुरक्षित कोने में
ठहरी किसी की याद

स्थाई रहते हैं छपे हुए शब्द
मन में बसी किसी अमिट स्मृति की तरह।

- डॉ शरद सिंह


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05 June, 2017

विश्व पर्यावरण दिवस 2017 ... डॉ शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

विश्व पर्यावरण दिवस 2017

 धरती के प्रति जागरूक हो
पर्यावरण बचाना है
नदी, ताल की रक्षा कर के
जीवन सजल बनाना है
नष्ट न हो पाए हरियाली
पौधा नया लगाना है
‘शरद’ स्वयं संकल्पित हो कर
सबको राह दिखाना है
- डॉ शरद सिंह

 Happy World Environment Day 2017

03 June, 2017

संवाद करते पत्थर .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


संवाद करते पत्थर
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पत्थर बेजान नहीं होते
करते हैं संवाद
किसी विद्वान, ज्ञानी
किसी पोथी या भित्तिचित्र की तरह
या प्रेमी युगल की तरह
पत्थर भी सिखा सकते हैं
चौसठ कलाएं
और जीवन के
सारे रहस्य
हां,
यदि वे हों -
खजुराहो या कोणार्क मंदिरों के पत्थर....
सच मानो,
कला का स्पर्श पा कर
हो जाते हैं पत्थर भी प्राणवान ।

01 June, 2017

मौन भी संवाद है .... डॉ शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


मौन भी संवाद है
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मौन भी संवाद है
यदि आंखों से
कहा और सुना जाए
प्रेम भी धड़कन है
यदि दिल से दिल को
छू लिया जाए
फिर मौन और प्रेम भी
बसा सकते हैं
कोलाहल भरी एक दुनिया
जिसमें अर्थ
शब्द का लिबास पहन का घूमते रहेंगे
उड़ती रहेंगी पंक्तियां की तितलियों की तरह
और मुखर होता रहेगा सन्नाटा
हथेली में रची मेंहदी
और मेंहदी में छिपाकर लिखे गए
नाम की तरह
क्यों कि मौन भी संवाद ही तो है।