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30 January, 2021

मृतक कथाएं | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

मृतक कथाएं

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


घिसी हथेली की रेखाएं

जाने कहां-कहां ले जाएं।


घर के बाहर

सिर के ऊपर

सूरज बिना तपन

अंगुल-अंगुल

उभर गया अब

मन का सूनापन


अपनेपन का दाग़ दिखा कर

रिश्ते किरच हो जाएं।



कल की बातें

सपन दिखाते

जाने गईं किधर

पोर-पोर में

रचे-बसे हैं

सूखे फूल इतर


नेह डायरी के पृष्ठों पर

लिखी हुई हैं मृतक कथाएं।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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29 January, 2021

चैन है प्रवासी | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh


नवगीत

चैन है प्रवासी

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


भीड़ में उदासी

ज़िन्दगी

बूंद-बूंद प्यासी।


धुंआ-धुंआ

उजियारा

कलछौंही लालटेन

उंगली की 

पोर से

छूट गई पेन


नेह भी कपासी

ज़िन्दगी

हो गई धुंआ सी।


पोर-पोर

पैनापन

यादों के जाल में

तैर गया

चेहरा

नयन ताल में


देह भी रुंआसी

ज़िन्दगी

है गहन व्यथा सी।


द्वार-द्वार

टूट गए

शुभलाभी सातिए

भीत की

दीवार ने

असगुन रचा लिए


चैन है प्रवासी

ज़िन्दगी

रह गई ज़रा-सी।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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23 January, 2021

दर्द का पड़ाव | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

दर्द का पड़ाव

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


पोर-पोर

दर्द का पड़ाव

कभी धूप कभी छांव।


तथाकथित अपनों के

चूर हुए वादे

स्याह कर्म वालों के

वस्त्र रहे सादे


ओर छोर

जन्मते तनाव

कभी पेंच कभी दांव।



टूटते घरौंदों में

थकन की कराहें

रोज़गार बिना सभी

बिखर गई चाहें


कोर-कोर

आंसू के घाव

कभी डूब कभी नाव।



भूख सने होंठों पर

रोटी के गाने

सबके सब दुखी यहां

सड़क, गली, थाने


जोर-शोर

ओढ़ते छलाव

कभी मोल कभी भाव।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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22 January, 2021

मन में घाव उकेरे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

मन में घाव उकेरे
       - डाॅ सुश्री शरद सिंह

जब से 
दुख ने नाता जोड़ा
सपने चूर हुए
अपनों से
लगने वालों के
मुखड़े दूर हुए।

नागफनी-सा
दर्द उभर कर
मन में घाव उकेरे
भरी दुपहरी
घिर-घिर आए
पलकों तले अंधेरे

जब से
सबने रस्ता छोड़ा
घर नासूर हुए
सूने से 
आंगन में ठंडे
दिन तंदूर हुए।

टुकड़ा-टुकड़ा 
होता जीवन
हाथों फिसला जाए
पोर-पोर पर
दुखती चाहत
गुमसुम गीत सुनाए

जब से 
सूरज हुआ निगोड़ा
रंग बेनूर हुए
छाया से
लगते ये रिश्ते
नामंज़ूर हुए।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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21 January, 2021

राह का गोपन | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

राह को गोपन

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


देह का बोझा

उठाए

अब नहीं उठता।



पेट में है

भूख की चटकन

सीवनों-सी कस गई बांहें

लूटता है

राह को गोपन


एक अंगारा

बुझाए

अब नहीं बुझता।



झोपड़ी के

द्वार में सूखा,

खेत का महका हुआ यौवन

खा गया है

मौसमी धोखा


बिम्ब हरियाला 

उगाए

अब नहीं उगता।



पंछियों के

पर हुए टुकड़े

अब हवाओं से उलझता कौन

हर किसी के

व्यक्तिगत दुखड़े


चैन परदेसी

रुकाए

अब नहीं रुकता।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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19 January, 2021

वर्जनाएं धूप की | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

 

Dr (Miss) Sharad Singh 

नवगीत

वर्जनाएं धूप की

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


वर्जनाएं 

धूप की

उंगली उठाए दिन

तुम्हारे बिन।


रेत पर 

छूटे हुए पद-चिन्ह

लहरों से परे

डोंगियां भी

मौन

होंठों पर धरे


हाशियों में 

नाम लिख

सुधियां जगाए दिन

तुम्हारे बिन।



नेह के 

चटके हुए संबंध

टूटा सिलसिला

झील का ये

दर्द

पर्वत से मिला

खाइयों में

अब यही

दुख गुनगुनाए दिन

तुम्हारे बिन।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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17 January, 2021

धूल की बस्ती | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

 धूल की बस्ती

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


बीत जाने के लिए

दिन चले आए

सुबह से रीत जाने के लिए।


धूल की बस्ती

घने पांव उगाए

एक वन

ताश के पत्ते

गिनो हर ओर से

बावन


गिन नहीं पाए

सभी से जीत जाने के लिए।


देह कांखों में

छुपाए नाम की

गठरी

रात जैसे हो गई 

है दर्द की

चारी


छिन गए साए

कि आए मीत जाने के लिए।

      

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

16 January, 2021

बंधु, मेरे गांव में | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

बंधु, मेरे गांव में

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


शब्द

    परतीले हुए हैं

              जब कभी

दूर होते ही गए अपने सभी।


सूर्य फिसला 

उस पहाड़ी के शिखर से

जो नदी का भार भी

न ढो सका

बंधु, मेरे गांव में

कोई अभी तक

चैन से न हंस सका, 

न रो सका


दर्द 

    पथरीले हुए हैं

              जब कभी

टीस बोते ही गए अपने सभी।



रेत पिघली

नम हथेली की जलन से

और सीने पर उतरती

ही रही

बूंद के भ्रमजाल में

बांहे पसारे

नेह हिरनी रात भर 

सोई नहीं


रंग 

   सपनींले हुए हैं

              जब कभी

देह ढोते ही गए अपने सभी।

       

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

15 January, 2021

धूप तले छांव | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

धूप तले छांव

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


उंगली में सुई

चुभ गई

पोर-पोर में हुआ खिंचाव

             धूप तले छांव।


मोची का ठिया

ढिबरी-सा दिया

रात छुईमुई

        हो गई


घर-आंगन काला घेराव

             धूप तले छांव।


गेंदे की गंध

गजरे के बंध

फिर से अनछुई-

        सी हुई


मंडी में बिकी बिना भाव

             धूप तले छांव।


जीवन की शाम

कहे राम-राम

सूखी-सी रुई

      उड़ गई


पांव-पांव अंधियारे गंाव

             धूप तले छांव।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

14 January, 2021

दुखड़ा रोए इकतारा | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

 दुखड़ा रोए इकतारा

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


जिस्म हुआ पारा-पारा

      जैसे जलता अंगारा।


शब्द की किरचें

आंखों चुभतीं

दिल तक लहूलुहान हुआ

खारा जल

उंगली सहेजती

दीपक से भी तेल चुआ


सुख अनबूझ पहेली जैसा

      बूझे कैसे दुखियारा।



दिन की टांगें

सड़क नापतीं

शाम की क़िस्मत फुटपाथी

पीठ दिखा 

गुमशुदा हो गए

अपने मुंहबोले साथी


सब साज़ों से अलग-थलग हो

         दुखड़ा रोए इकतारा।



चांद सुलगता

कंदीलों में

तारों की चिंगारी उड़ती

किन्तु पेट के

‘ब्लैकहोल’ में

क्षुधा कील जैसी गड़ती


रात चुराए भोर का सूरज

       बाहर-भीतर अंधियारा।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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13 January, 2021

तुम याद आए मीत | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

तुम याद आए मीत

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


घाटी से

सिसकते

टेर जाए बांसुरी के गीत

        तुम याद आए मीत।


घूमते पेड़ों तले

पत्तियों पर नाम लिखते

           नेह डूबे दिन

मोर-पंखी आस्थाएं

           स्वप्न से पलछिन


चिड़ियों से 

चहकते

गुनगुनाए इक पुरानी प्रीत

         तुम याद आए मीत।



पत्थरों को डालते

झील में लहरें उठाते

            तोड़ते बन्धन

कृष्ण-राधा की कथाएं

            देखतीं दरपन


हल्दी से

महकते

छोड़ आए वस्त्र कोई पीत

          तुम याद आए मीत।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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