गिनती के दिन
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
उंगली के पोर
और
गिनती के दिन।
अनसुलझे
चंद प्रश्न
हाथ में उगे
पथरीले
दुख-दर्द
हो गए सगे
मुट्ठी भर शोर
और
चुप्पी अनगिन।
सारे सुख
पंक्तिबद्ध
भेंट चढ़ गए
खपरैली
चाहत के
बिम्ब थे नए
पलकों की कोर
और
चुभते पल-छिन।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०१-२०२१) को 'कुछ देर ठहर के देखेंगे ' (चर्चा अंक-३९४१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अनीता सैनी जी,
ReplyDeleteमेरा नवगीत चर्चा मंच में शामिल के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
- डॉ. शरद सिंह
बहुत सुंदर रचना,शरद दी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार ज्योती देहलीवाल जी 🌹🙏🌹
Deleteसुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🙏🌷
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर
आभारी हूं आपकी टिप्पणी के लिए 🌹🙏🌹
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