31 December, 2020

नए साल में | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | ग़ज़ल

 

Naye Saal Me - Ghazal of Dr Sharad Singh

नए  साल  में  

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

नए    साल   में    हर   नई   बात हो।

खुशियों  की  हरदम ही बरसात हो।


हो  इंसानियत    की    तरफदारियां

सभी  के  दिलों  में   ये  जज्बात हो।


मुश्किल  जो   आई    गए  साल में

नए साल में   उसकी   भी  मात हो।


सभी  स्वस्थ  रह  कर जिएं जिन्दगी

दुखों की न  कोई  भी अब घात हो।


‘शरद’ की दुआ  है अमन, चैन की

चमकता  हुआ दिन  भी हो, रात हो।

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28 December, 2020

चिड़िया तरसे दाने-दाने | आंसू बूंद चुए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह

Dr (Miss) Sharad Singh

चिड़िया तरसे दाने-दाने

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


खुले पंख की बंद उड़ाने

    चिड़िया तरसे दाने-दाने।


इकलौते

सूरज से झाकें

मुट्ठी भर

किरणों के तिनके

शहरों की

परिपाटी बूझो

तुम किनके, हम किनके?


रिश्तों के हैं रिक्त खज़ाने

   तिल-तिल टूटे नेह सयाने।



सपनीलीं 

आखों की दुनिया

पलछिन

सपन सहेजे

मौसम ने

जैसे रख डाले

तेज़ धूप में खुले बरेजे


हर चेहरे बेबस, बेगाने

   मनवा गए दुखी तराने।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah

27 December, 2020

दर्द लिखे बूटे | आंसू बूंद चुए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह

Dr (Miss) Sharad Singh


 






दर्द लिखे बूटे

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


मन के रूमाल पर

दर्द लिखे बूटे।


रिक्शे का पहिया

गिने

तीली के दिन

पैडल पर पैर चलें

तकधिन-तकधिन


भूख करे तांडव

थकी देह टूटे।


अनब्याही बिटिया

सुने

बेबस रुनझुन

अहिवाती कंगन को

खाते हैं घुन


ड्योढ़ी का दर्पण

इंच-इंच फूटे।


चिल्लर की दुनिया

बुने

सपनों के घर

झुग्गी के तले उगे

रिश्ते जर्जर


दारू की बोतल

शेष भाग लूटे।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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26 December, 2020

पिसता है दिन | आंसू बूंद चुए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह

Dr (Miss) Sharad Singh

पिसता है दिन

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


चाकी के पाट में

पिसता है दिन

पोर-पोर राहों में 

        घिसता है दिन।


ज़िन्दगी रुमाल-सी 

ज़ेब में लिए

रोज़गार की तलाश में 

बहुत जिए


अब तो बाज़ारों में

बिकता है दिन

बूंद-बूंद पानी-सा

          रिसता है दिन।



घूंट भी करेले के

मिलें तो सही

लिए बिना ऋण, कर्जों से

भरी बही


इंच-इंच मुश्क़िल से

खिंचता है दिन

 बेहद आहिस्ता

         आहिस्ता है दिन।


अंधापन न्याय का

द्वार-द्वार पर

ज़िरह बिना छीन लिया

आंगन औ' घर


काल-कोप जैसा ही

दिखता है दिन

मुरझाए फूल का 

      गुलिस्तां है दिन।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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25 December, 2020

शोक दिठौना | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

शोक दिठौना

 - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह

सुख के माथे

शोक दिठौना

लगता है दिन बौना-बौना।


घर भीतर

रनिवास सिसकता

खाली ज़ेबें 

हाट कसकता


सूना चौका

रिक्त भगोना

भूखी गौ का मरियल छौना।


कथरी की 

सीवन भी चटकीं

थकी उम्मींदें

दर-दर भटकीं


हाथ लगा है 

जिया करोना

हरी दूब पर बांझ बिछौना।


आंखों में 

जाले आ सिमटे

फटे पांव से 

जंगल लिपटे


ये तो क़िस्मत-

का है टोना

लहर खिलाड़ी, नाव खिलौना।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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Shok Dithona - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah



24 December, 2020

आंसू बूंद चुए | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

 

Dr (Miss) Sharad Singh









आंसू बूंद चुए

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


तथाकथित मित्रों के 

         किस्से ख़त्म हुए।


प्रेम की चादर 

जर्जर निकली

फटे-पुराने थे रिश्ते

एक-एक करके 

टूट गए फिर 

नेहबंध घिसते-घिसते


सूखी आंखों से भी

          आंसू बूंद चुए।



ग्रंथों पर भी 

धूल जम गई

टूट गए सीवन धागे

दरवाज़े पर

अशुभ लिखा कर

देंखेंगे, जो हो आगे


दिल के पिंजरे में

        क्या पालें मरे सुए।


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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)



Ansoo Boond Chuye - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah


23 December, 2020

शंख चटके | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

 

Dr (Miss) Sharad Singh







शंख चटके

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


वादियों-सा दर्द मेरा

        शाम से पहले

           घिरता अंधेरा।


रोज़ सूरज 

घूमता है सिर झुकाए

बंद मुट्ठी में 

उजाले को दबाए


टूटता है एक तारा

       फूंकने को सिर्फ़

           अपना ही बसेरा।


शंख चटके

रूठते हैं सब यहां

जिप्पसियों-सा

मन फिरे जाने कहां


अपशकुन का ज्यों इशारा

          स्वस्तिक उल्टा

            हवाओं ने उकेरा।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

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Shankh Chatke - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah















22 December, 2020

पिंजरे में बेचैन सुआ | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh


पिंजरे में बेचैन सुआ

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


गीली लकड़ी

भीगी आंखें

धुंआ-धुंआ

छप्पर सारी रात चुआ।


सिलवट वाले 

बिस्तर पर

बूंद-बूंद कर 

असगुन छाया

   मन का 

   कच्चा फर्श सिताया


उधड़ी सीवन

फूटी क़िस्मत

धुंआ-धुंआ

पिंजरे में बेचैन सुआ।


दस्तक वाली 

चैखट पर

सन्नाटे ने 

भीड़ लगाया

    घर का

    औंधापन गहराया 


सूनी देहरी

टूटा दरपन

धुंआ-धुंआ

हरदम बेहद बुरा हुआ।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


Pinjare Me Bechain Suaa - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah




21 December, 2020

नेह पियासी | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नेह पियासी

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


मीलों लम्बी

घिरी उदासी

        देह ज़रा-सी।


कुर्सी, मेजें,

घर, दीवारें

सब कुछ तो मृतप्राय लगें

बोझ उठाते

अपनेपन का

पोर-पोर की तनी रगें


बंज़र धरती

नेह पियासी

       धार ज़रा-सी।


गलियां देखें

सड़के घूमें

फिर भी चैन न मिल पाए

राह उगा कर 

झूठे   सपने

नई यात्रा करवाए


रोती आंखें

सपन कपासी    

रात ज़रा-सी।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

20 December, 2020

टूटती उड़ान | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh


टूटती उड़ान

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पथरीली रातें 
और दिवस बंजर।

बंधुआ-सी 
देह रहे 
हरदम बीमार 
लोटे भर 
शोक और 
चुल्लू भर हार

अनुभूति घातें 
रचें खेल दुष्कर।

बाबा के
गमछे में 
टीस भरी गंध 
अपनों ने 
फूंक दिए 
नेह के प्रबंध

जुदा-जुदा बातें 
अलग-अलग आखर।

सकुचाई 
उम्मीदें 
टूटती उड़ान 
तिनकों की 
झोपड़ी 
फूस का मचान

टुकड़ों-सी गातें
और दुखी छप्पर।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

19 December, 2020

मुटिठयों में प्यास भींचे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

मुटिठयों में प्यास भींचे

     - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


धूप में जलते

दिवस

पथरा गए।



फुनगियों पर

गिद्ध बैठे

टोहते

बंज़र बग़ीचे

जेठ की

तपती दुपहरी

मुट्ठियों में 

प्यास भींचे


फूलते-फलते

शहर

मुरझा गए।



भीतरी मन

और आंगन

ओढ़ते

गहरी उदासी

रक्तपाती

रास्तों से

दूरियां हैं

बस, ज़रा-सी


आंख में पलते

सपन

धुंधला गए।


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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

 Mutthiyon Me Pyas Bheenche - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah

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