17 January, 2021

धूल की बस्ती | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

 धूल की बस्ती

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


बीत जाने के लिए

दिन चले आए

सुबह से रीत जाने के लिए।


धूल की बस्ती

घने पांव उगाए

एक वन

ताश के पत्ते

गिनो हर ओर से

बावन


गिन नहीं पाए

सभी से जीत जाने के लिए।


देह कांखों में

छुपाए नाम की

गठरी

रात जैसे हो गई 

है दर्द की

चारी


छिन गए साए

कि आए मीत जाने के लिए।

      

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

21 comments:

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹

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    1. अनुराधा चौहान जी हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹

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  3. रवीन्द्र सिंह जी,
    चर्चा मंच में मेरे नवगीत को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
    चर्चा मंच में स्थान मिलना सदा सुखद अनुभूति देता है। बहुत-बहुत धन्यवाद आपका 🙏
    - डॉ शरद सिंह

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी 🌹🙏🌹

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    1. दिली शुक्रिया गगन शर्मा जी 🌹🙏🌹

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  6. खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

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  7. सुंदर गीत के लिए बधाई शरद जी !

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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कल्पना मनोरमा जी 🌹🙏🌹

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    1. हार्दिक धन्यवाद शान्तनु सान्याल जी 🌹🙏🌹

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  9. छिन गए साए

    कि आए मीत जाने के लिए।
    बहुत बहुत सुन्दर सृजन

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    1. आलोक सिन्हा जी हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹

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  10. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

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  11. सुंदर भाव रचना ।
    छोटे में कितना कुछ कहती कहीं गहरे उतरती।
    अभिनव सृजन शरद जी।

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    1. इस अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🌹🙏🌹

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