हिरणबागों में
- डाॅ सुश्री शरद सिंह
गंध कस्तूरी महकती
हिरणबागों में
नेह धागों में।
भीत के
पीछे उगी
हरियल पहाड़ी पर
हर दफ़ा
उतरा, चढ़ा मन
चाह अपना कर
धूप की बाती चमकती
दिन चराग़ों में
नेह धागों में।
द्वार पर
बैठे हुए
कुछ गुनगुनाते स्वर
सुख दुखों के
फूल से
महके हुए आखर
बांसुरी ज्यों खिलखिलाती
नम परागों में
नेह धागों में।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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वाह ! वाह ! बहुत सुंदर शरद जी । मन को भिगो देने वाली काव्यात्मक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद राजेन्द्र माथुर जी 🙏
Deleteमेरे ब्लॉग समकालीन कथायात्रा में मेरे उपन्यास "शिखण्डी" की समीक्षा भी पढ़ें और तत्संबंध में अपनी राय से अवगत कराएं। मुझे प्रतीक्षा रहेगी 🙏
शिखण्डी उपन्यास,समीक्षा, समीक्षक शैलेंद्र शैल, सामयिक सरस्वती उपन्यासकार शरद सिंह