28 November, 2023

शायरी | तुम शहरी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

तुम शहरी, महानगर जैसे हो
हम ही  हैं  छोटी तहसील से।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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शायरी | अकेले हैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कहने भर को अपनेपन के मेले हैं।
सब अपने साये के साथ अकेले हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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26 November, 2023

शायरी | ज़िंदगी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कट रहे हैं दिन   सुपारी की तरह
ज़िन्दगी लगती, उधारी की तरह
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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25 November, 2023

शायरी | इक दिन | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हमको   पाठ   पढ़ाने   वालो
वक़्त पढ़ेगा तुमको इक दिन
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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24 November, 2023

शायरी | हम ही नादान | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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22 November, 2023

कविता | चाहने पर भी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

चाहने पर भी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

दिए की लौ हूं
एक दिन बुझ जाऊंगी

बुझने पर
फिर
नज़र नहीं आऊंगी

किसी के 
चाहने पर भी।
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21 November, 2023

शायरी | पता पूछ कर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


ग़मों ने हमारा पता ढूंढ कर
हमें मुस्कुराना सिखा ही दिया।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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19 November, 2023

कविता | ज़िंदगी की एनाटॉमी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ज़िंदगी की एनाटॉमी
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आग के दरिया पर
नहीं बनते लकड़ी के पुल
पर पेट के तंदूर पर
तनी रहती है
काग़ज़ी चमड़ी
सूखी पसलियों
और पेल्विक के बीच,
सांसों की धौंकनी के 
बावज़ूद
टिकी रहती है 
ताज़िन्दगी
भूख को मुंह चिढ़ाती
ऐंठती, सिकुड़ती
दहन के ऊपर, दाह से परे,
क्या है कोई 
इससे भी बड़ा चमत्कार
ज़िंदगी की एनाटॉमी में?
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08 November, 2023

कविता : स्त्रीपाठ - 1 : एक स्त्री में देवीत्व - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
स्त्रीपाठ - 1 : 
एक स्त्री में देवीत्व 
        - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कभी पढ़ो एक स्त्री को
दुर्गा सप्तशती की तरह
तब एहसास होगा 
एक स्त्री में 
देवीत्व का।

कभी देखो एक स्त्री को
मंगलदीप में प्रदीप्त
बाती की तरह
तब दिखेगा रूप
एक स्त्री में 
देवीत्व का।

कभी महसूस करो
एक स्त्री के अस्तित्व को
पुरुषवादी चश्मा उतार कर,
तब कहना-
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'
क्योंकि स्त्री में देवीत्व है
स्त्री के रूप में।
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