21 January, 2021

राह का गोपन | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नवगीत

राह को गोपन

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


देह का बोझा

उठाए

अब नहीं उठता।



पेट में है

भूख की चटकन

सीवनों-सी कस गई बांहें

लूटता है

राह को गोपन


एक अंगारा

बुझाए

अब नहीं बुझता।



झोपड़ी के

द्वार में सूखा,

खेत का महका हुआ यौवन

खा गया है

मौसमी धोखा


बिम्ब हरियाला 

उगाए

अब नहीं उगता।



पंछियों के

पर हुए टुकड़े

अब हवाओं से उलझता कौन

हर किसी के

व्यक्तिगत दुखड़े


चैन परदेसी

रुकाए

अब नहीं रुकता।

-----------

(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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13 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹

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  2. मीना भारद्वाज जी,
    आभारी हूं कि आपने मेरा नवगीत चर्चा मंच में शामिल किया है।
    आपको हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
    - डॉ शरद सिंह

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  3. वाह!लाजवाब सृजन।
    सादर

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    1. दिली शुक्रिया अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

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  4. अत्यंत भावपूर्ण रचना । हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  5. झोपड़ी के
    द्वार में सूखा,
    खेत का महका हुआ यौवन
    खा गया है
    मौसमी धोखा

    बिम्ब हरियाला
    उगाए
    अब नहीं उगता।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी नवगीत।

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  6. बहुत सुंदर रचना
    हर पंक्ति दिल में उतरती हुई
    उम्दा रचना

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  7. मन की तलहटी में उतर गए हैं इस नवगीत के शब्द ।

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  8. शरद जी बहुत ही मधुर गीत है यह आपका |

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