19 January, 2021

वर्जनाएं धूप की | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

 

Dr (Miss) Sharad Singh 

नवगीत

वर्जनाएं धूप की

- डाॅ सुश्री शरद सिंह


वर्जनाएं 

धूप की

उंगली उठाए दिन

तुम्हारे बिन।


रेत पर 

छूटे हुए पद-चिन्ह

लहरों से परे

डोंगियां भी

मौन

होंठों पर धरे


हाशियों में 

नाम लिख

सुधियां जगाए दिन

तुम्हारे बिन।



नेह के 

चटके हुए संबंध

टूटा सिलसिला

झील का ये

दर्द

पर्वत से मिला

खाइयों में

अब यही

दुख गुनगुनाए दिन

तुम्हारे बिन।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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6 comments:

  1. बहुत सुन्दर शरद जी । इतने कम अल्फ़ाज़ में इतने गहरे जज़्बात ! क्या कहने !

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    1. हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹

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  2. मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कविता रावत जी 🌹🙏🌹

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  3. सुंदर प्रस्तुति ।
    सादर।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹

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