06 October, 2023

कविता | एक अधपढ़ी किताब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
एक अधपढ़ी किताब
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

एक अधपढ़ी किताब
रखी है 
मन की शेल्फ में

मुड़ा है 
उस पन्ने का कोना
पढ़ने के लिए
फिर कभी
वहीं से

नहीं आया
वह 'फिर कभी'
आज तक
जबकि
ज़िंदगी 
चली आई है
उस मुड़े हुए कोने से
दूर
बहुत दूर

फिर भी 
कुछ किताबें
नहीं दी जा पाती हैं
किसी को भी
न किसी पढ़ने वाले को
न पुस्तकालय को
न रद्दी वाले को

तब तो और भी नहीं
जब हो वह किताब
अधपढ़ी।
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05 October, 2023

शायरी | तुझसे जवाब मांगूंगी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मर के  तुझसे जवाब मांगूंगी
अपने ग़म का हिसाब मांगूंगी
तू है दाता तो क्यूं लिया मुझसे
देख, तुझसे वो  ख़्वाब मांगूंगी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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01 October, 2023

शायरी | ख़्वाब भी वीरां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

शायरी | ख़्वाब भी वीरां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

जिन्हें मिली है मुहब्बत, उन्होंने की होगी
हमें तो  ख़्वाब भी  वीरां  मिले हमेशा से।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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