08 January, 2021

हृदय-कंदील | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत संग्रह | आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

एक और नवगीत मेरे नवगीत संग्रह "आंसू बूंद चुए" से ...
  

हृदय-कंदील

- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


बींधती है

देह को 

दर्द की जब कील

कांप उठती है हृदय-कंदील।


मौसमी बदलाव से

सहमा हुआ

टूटते घर का खुला छप्पर

ग्रेजुएट के 

हाथ में ठेला 

भूल बैठा है सभी अक्षर


चींखती है

अपशकुन

आसमां पर चील

कांप उठती है हृदय-कंदील।



डामरीकृत राह में 

घिसते हुए

नर्म पांवों के थके तलवे

पेट भरने की 

जुगत साधे

मंडियों में रूप के जलवे


भीगती है 

रक्त से

न्याय की इंजील

कांप उठती है हृदय-कंदील।

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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)


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Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah




2 comments:

  1. भीगती है
    रक्त से
    न्याय की इंजील
    कांप उठती है हृदय-कंदील।

    वाह! बहुत सुंदर।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌹🙏🌹

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