30 September, 2022

कविता | धूप बारिश के बाद की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


धूप बारिश के बाद की
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कुछ अधिक
गरमाने लगी है
धूप
बारिश के बाद की
नमी, उमस
और उष्णता से भरी धूप
कर देती है व्याकुल
देहरी लांघते ही

धूप का काम है
तपना
वह तप रही है,
झुलसा रही है
अनावृत चेहरों को

चेहरे,
अपरिचित चेहरे
धूप के लिए भी
और
मेरे लिए भी,
भीड़ से गुज़रते हुए
हम नहीं देख पाते
चेहरों को
ठीक से
और देख भी लें
तो नहीं पढ़ पाते
उनकी अहमियत को
धूप भी नहीं पढ़ पाती
दिलों को
वरना
कर के महसूस
मेरे भीतर के
विसूवियस
मुझे
और न तपाती।
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24 September, 2022

रात | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | कविता

रात
 - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

रात आ गई है
मेरे कांधे पर
सिर रख कर
सोने ,
जानती है
मुझे तो है जागना 
ताज़िन्दगी
गिनते हुए
पहर के पहाड़े
यादों के सिरहाने
बैठ कर

अब वो ही देखेगी
मेरे हिस्से के ख़्वाब
ओढ़ेगी चादर
ख़्वाहिशों की
भोर होने तक

और मेरी आंखें
पढ़ती रहेंगी
वक़्त की किताब
पन्ने-दर-पन्ने।
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22 September, 2022

कविता | बारिश | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

बारिश
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

बूंदें गिरती हैं
मेरे सिर पर
और उलझतीं हुई
बालों में
सरक जाती हैं धीरे से
मेरी गर्दन
और कांधों पर

कुछ बूंदें
भिगोती हैं कुर्ते को
और कुछ 
जा पहुंचती हैं
धड़कन के पास
गोया यह जांचने
कि उसमें
अभी भी
वह रफ़्तार है या नहीं

या फिर 
देह पर उतर कर
सूंघना चाहती हैं
उस गंध को
जो महकती है कस्तूरी-सी 
किसी के प्रेम में

पागल बूंदें
नहीं जानतीं
कि प्रेम 
अब नहीं रहा वैसा
जैसा देखा है उसने 
चातक में
चकोर में
चकवा में,
इंसानी प्रेम 
ढल गया है अब
जाति में, धर्म में,
ग्रीनकार्ड में

पागल बूंदें
पिघला नहीं सकतीं
उदासी के कोलोस्ट्रोल को,
न ही कर सकती हैं 
इसका अनुभव कि
कैसे तंग हो रही हैं सांसें
शुद्ध प्रेम के बिना

वर्जित क्षेत्र में प्रविष्ट
नासमझ बूंदें
धड़कनों को समझ पाने से पहले
सूख जाएंगी
पा कर देह की तपन
सील कर रह जाएगी
दिल की
अधखुली किताब

जितना भिगो रही है
मुझे बारिश
खुद भी भीग जाएगी
मुझसे मिल कर
यक़ीनन।
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10 September, 2022

कविता | इन दिनों | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 
इन दिनों 
 - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

बादलों का लिहाफ़ 
ओढ़कर
सोता है चांद
इन दिनों,
घुट रही है चांदनी
 पहर-दर-पहर।    
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07 September, 2022

कविता | तुमने तो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
तुमने तो ....
  - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मुझे पसंद है
बारिश में भीगना 
पर तुमने तो 
बादल ही सुखा दिए 
मेरे आसमान के!
   
But you...

I love
 Getting wet in the rain
 but you
 the clouds dried up
 of my sky!
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03 September, 2022

ग़ज़ल | धूप बारिश की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


#अर्ज़कियाहै  - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
हार्दिक धन्यवाद #युवाप्रवर्तक
यह ग़ज़ल आप इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं - https://yuvapravartak.com/69213/
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ग़ज़ल : धूप बारिश की
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

उसकी यादों सी सुनहरी है, धूप बारिश की।
फिर भी तन्हा है, इकहरी है, धूप बारिश की।

अपने हालात के   बारे में   सोचती रहती
एक गुमसुम सी दुपहरी है, धूप बारिश की।

उसने पैरोल पे छोड़ा है बादलों को अभी
खुद ही जज, खुद ही कचहरी है, धूप बारिश की।

सीलनें छन के चली जाएंगी बिस्तर से सभी
क्योंकि झीनी सी मसहरी है, धूप बारिश की।

छत से, मुंडेर पे, दीवार से कांधे पे "शरद"
इक फुदकती सी गिलहरी है, धूप बारिश की।
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