सहेली
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक शाम
मेरे बाजू में
बैठी थी अभी
रात आते ही
चली गई
छोड़ कर
और उतर आई
खूंटी पर टंगी उदासी
सगी सहेली की तरह
साथ देती है
रोज ही।
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