अस्तित्वहीन
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
मैं क्या हूं?
कुछ भी तो नहीं
शून्य से भी अधिक
अस्तित्वहीन
शून्य की आकृति
वज़न बढ़ाती जाती हैं
संख्याओं का
मैं नहीं
शून्य अनंत है
अथाह है
असीम है
मैं नहीं
शून्य बेहतर है
मुझसे
ज्ञान शून्यता
सर्वशक्तिमान है, पूजित है
मैं नहीं
मुझे क्षमा करना
मेरी बौद्धिक शक्तियों !
तुमने तो चाहा
किंतु मैं
नहीं बन सकी बेहतर शून्य से ।
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