06 October, 2023

कविता | एक अधपढ़ी किताब | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
एक अधपढ़ी किताब
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

एक अधपढ़ी किताब
रखी है 
मन की शेल्फ में

मुड़ा है 
उस पन्ने का कोना
पढ़ने के लिए
फिर कभी
वहीं से

नहीं आया
वह 'फिर कभी'
आज तक
जबकि
ज़िंदगी 
चली आई है
उस मुड़े हुए कोने से
दूर
बहुत दूर

फिर भी 
कुछ किताबें
नहीं दी जा पाती हैं
किसी को भी
न किसी पढ़ने वाले को
न पुस्तकालय को
न रद्दी वाले को

तब तो और भी नहीं
जब हो वह किताब
अधपढ़ी।
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4 comments:

  1. सच में कुछ किताबें अधपढी ही रह जाती हैं ,फिर भी मन उन्हें सहेज कर रखना चाहता है । खूबसूरत सृजन।

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  2. ऐसी अधपढ़ी किताबों पर अटका रहता है मन सदा...
    फिर जीवन की उस अधपढ़ी डगर पर वापस पहुँचना आसान कहाँ होता है...
    बहुत कुछ यूँ ही पीछे छूट ही जाता है.

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