22 December, 2023

शायरी | सर्दी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

चुभ  रहे  हैं  शीत के  नेज़े* नुकीले
रात की   सर्दी  अलावों  में  घुली है
लो,ठिठुर कर हो गया है चांद आधा
चांदनी  भी  बर्फ़  से  जैसे  धुली है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
(*नेज़े= भाले)

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