चुभ रहे हैं शीत के नेज़े* नुकीले
रात की सर्दी अलावों में घुली है
लो,ठिठुर कर हो गया है चांद आधा
चांदनी भी बर्फ़ से जैसे धुली है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
(*नेज़े= भाले)
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