अर्ज़ है -
चौपड़ बिछी हुई है, पासे फिंकते हैं।
राजनीति के हाथों, इंसा बिकते हैं।
चीरहरण पर धर्मराज की ख़ामोशी
नग्न देह पर भी,स्वारथ ही दिखते हैं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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