ज़िंदगी की एनाटॉमी
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
आग के दरिया पर
नहीं बनते लकड़ी के पुल
पर पेट के तंदूर पर
तनी रहती है
काग़ज़ी चमड़ी
सूखी पसलियों
और पेल्विक के बीच,
सांसों की धौंकनी के
बावज़ूद
टिकी रहती है
ताज़िन्दगी
भूख को मुंह चिढ़ाती
ऐंठती, सिकुड़ती
दहन के ऊपर, दाह से परे,
क्या है कोई
इससे भी बड़ा चमत्कार
ज़िंदगी की एनाटॉमी में?
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सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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