शायरी | रामकहानी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
कैसे लिख दें रामकहानी,
लिखने वाली बात नहीं।
नभ-गंगा हैं भीगी आंखें,
पानी भरी परात नहीं।
खण्ड काव्य न, महाकाव्य है
और न कोई गीत-ग़ज़ल
चूड़ी जैसी पीर हमारी,
अंत नहीं, शुरुआत नहीं।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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