19 December, 2020

मुटिठयों में प्यास भींचे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

मुटिठयों में प्यास भींचे

     - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


धूप में जलते

दिवस

पथरा गए।



फुनगियों पर

गिद्ध बैठे

टोहते

बंज़र बग़ीचे

जेठ की

तपती दुपहरी

मुट्ठियों में 

प्यास भींचे


फूलते-फलते

शहर

मुरझा गए।



भीतरी मन

और आंगन

ओढ़ते

गहरी उदासी

रक्तपाती

रास्तों से

दूरियां हैं

बस, ज़रा-सी


आंख में पलते

सपन

धुंधला गए।


--------

(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

 Mutthiyon Me Pyas Bheenche - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah

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22 comments:

  1. धूप मे जलते दिवस पथरा गए.....
    लाजवाब रचना।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया

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    1. हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम सिन्हा जी 🌷🙏🌷

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  2. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति..।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा सिंह जी 🌷🙏🌷

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 दिसंबर 2020 को 'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. रवीन्द्र सिंह यादव जी,
      अत्यंत आभारी हूं कि आपने मेरे नवगीत को चर्चा मंच में शामिल किया है। यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है। आपको हार्दिक धन्यवाद 🌷🙏🌷

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🌷🙏🌷

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  5. यशोदा अग्रवाल जी,
    "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" में मेरे नवगीत को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार। आपकी इस सदाशयता के प्रति हार्दिक धन्यवाद 🌷🙏🌷

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  6. अभिनव अभिव्यक्ति - - सुन्दर सृजन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शान्तनु सान्याल जी 🌹🙏🌹

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  7. बहुत सुंदर भावनात्मक पंक्तियाँ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद नितीश तिवारी जी 🌻🙏🌻

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  8. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🌻🙏🌻

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  9. नमस्कार, शरद जी, क्या खूब ल‍िखा है ...फुनगियों पर

    गिद्ध बैठे

    टोहते

    बंज़र बग़ीचे

    जेठ की

    तपती दुपहरी

    मुट्ठियों में

    प्यास भींचे

    ...वाह । हमेशा की भांत‍ि अत‍ि उत्तम रचना

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    1. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु धन्यवाद अलकनंदा सिंह जी 🌷🙏🌷

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  10. भीतरी मन और आंगन ओढ़ते गहरी उदासी

    रक्तपाती रास्तों से दूरियां हैं बस, ज़रा-सी



    आंख में पलते सपन धुंधला गए।
    बहुत बहुत सुन्दर सरस रचना | वाह |

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    1. आभारी हूं आलोक सिन्हा जी आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए 🌷🙏🌷

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  11. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति की है शरद जी आपने ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹

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  12. भीतरी मन
    और आंगन
    ओढ़ते
    गहरी उदासी
    रक्तपाती
    रास्तों से
    दूरियां हैं
    बस, ज़रा-सी

    आंख में पलते
    सपन
    धुंधला गए....उम्दा रचना बधाई आदणीय

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