Dr (Miss) Sharad Singh |
मुटिठयों में प्यास भींचे
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
धूप में जलते
दिवस
पथरा गए।
फुनगियों पर
गिद्ध बैठे
टोहते
बंज़र बग़ीचे
जेठ की
तपती दुपहरी
मुट्ठियों में
प्यास भींचे
फूलते-फलते
शहर
मुरझा गए।
भीतरी मन
और आंगन
ओढ़ते
गहरी उदासी
रक्तपाती
रास्तों से
दूरियां हैं
बस, ज़रा-सी
आंख में पलते
सपन
धुंधला गए।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
Mutthiyon Me Pyas Bheenche - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah |
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धूप मे जलते दिवस पथरा गए.....
ReplyDeleteलाजवाब रचना।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया
हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम सिन्हा जी 🌷🙏🌷
Deleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति..।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा सिंह जी 🌷🙏🌷
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 दिसंबर 2020 को 'जवान तैनात हैं देश की सरहदों पर' (चर्चा अंक- 3922) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रवीन्द्र सिंह यादव जी,
Deleteअत्यंत आभारी हूं कि आपने मेरे नवगीत को चर्चा मंच में शामिल किया है। यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है। आपको हार्दिक धन्यवाद 🌷🙏🌷
वाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🌷🙏🌷
Deleteयशोदा अग्रवाल जी,
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" में मेरे नवगीत को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार। आपकी इस सदाशयता के प्रति हार्दिक धन्यवाद 🌷🙏🌷
अभिनव अभिव्यक्ति - - सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शान्तनु सान्याल जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत सुंदर भावनात्मक पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद नितीश तिवारी जी 🌻🙏🌻
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🌻🙏🌻
Deleteनमस्कार, शरद जी, क्या खूब लिखा है ...फुनगियों पर
ReplyDeleteगिद्ध बैठे
टोहते
बंज़र बग़ीचे
जेठ की
तपती दुपहरी
मुट्ठियों में
प्यास भींचे
...वाह । हमेशा की भांति अति उत्तम रचना
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु धन्यवाद अलकनंदा सिंह जी 🌷🙏🌷
Deleteभीतरी मन और आंगन ओढ़ते गहरी उदासी
ReplyDeleteरक्तपाती रास्तों से दूरियां हैं बस, ज़रा-सी
आंख में पलते सपन धुंधला गए।
बहुत बहुत सुन्दर सरस रचना | वाह |
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आभारी हूं आलोक सिन्हा जी आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए 🌷🙏🌷
Deleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति की है शरद जी आपने ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🌹🙏🌹
Delete
ReplyDeleteभीतरी मन
और आंगन
ओढ़ते
गहरी उदासी
रक्तपाती
रास्तों से
दूरियां हैं
बस, ज़रा-सी
आंख में पलते
सपन
धुंधला गए....उम्दा रचना बधाई आदणीय