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Dr (Miss) Sharad Singh |
दर्द लिखे बूटे
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
मन के रूमाल पर
दर्द लिखे बूटे।
रिक्शे का पहिया
गिने
तीली के दिन
पैडल पर पैर चलें
तकधिन-तकधिन
भूख करे तांडव
थकी देह टूटे।
अनब्याही बिटिया
सुने
बेबस रुनझुन
अहिवाती कंगन को
खाते हैं घुन
ड्योढ़ी का दर्पण
इंच-इंच फूटे।
चिल्लर की दुनिया
बुने
सपनों के घर
झुग्गी के तले उगे
रिश्ते जर्जर
दारू की बोतल
शेष भाग लूटे।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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