Dr (Miss) Sharad Singh |
चिड़िया तरसे दाने-दाने
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
खुले पंख की बंद उड़ाने
चिड़िया तरसे दाने-दाने।
इकलौते
सूरज से झाकें
मुट्ठी भर
किरणों के तिनके
शहरों की
परिपाटी बूझो
तुम किनके, हम किनके?
रिश्तों के हैं रिक्त खज़ाने
तिल-तिल टूटे नेह सयाने।
सपनीलीं
आखों की दुनिया
पलछिन
सपन सहेजे
मौसम ने
जैसे रख डाले
तेज़ धूप में खुले बरेजे
हर चेहरे बेबस, बेगाने
मनवा गए दुखी तराने।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी 🌹🙏🌹
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग सिंह विर्क जी,
Deleteमेरा नवगीत चर्चा मंच में शामिल के लिए हार्दिक धन्यवाद !
यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है। आपका आभार 🌹🙏🌹
- डॉ. शरद सिंह
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन शरद जी ,आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
हार्दिक धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🙏
Deleteआपको भी सपरिवार नववर्ष की असीम शुभकामनाएं 🙏⭐🌹⭐🙏
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति खरे जी 🙏
Deleteआपको नववर्ष की शुभकामनाएं 🙏⭐🌹⭐🙏
बहुत ही सुन्दर सृजन प्रकृति के मेल बंधन से रची हुई - - नूतन वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांतनु सान्याल जी जी 🙏
Deleteआप और आपके परिवार के लिए नववर्ष की मंगलमय हो 🙏⭐🌹⭐🙏