जाड़े की रात
- डॉ शरद सिंह
जाड़े की रात ने
सूरज से मांगी
एक सुबह
घर की दीवारों ने
मांगी अलावों से
गरमाहट
मैंने जो मांगा
अपनेपन में डूबी
इक आहट
तब से वो
मौन ओढ़ बैठा है
मैंने क्या उससे
कुछ ज़्यादा मांग लिया?
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प्रिय अनीता सैनी जी,
ReplyDeleteआपने मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित किया है, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार 🙏🌹🙏
बहुत शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी 🙏🌹🙏
ReplyDeleteसुंदर कोमल भाव
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🌷🙏🌷
Deleteबहुत ही सुंदर भाव, सादर नमस्कार शरद जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌺 🙏🌺
Deleteगुनगुनी धूप सी ... नरम- नरम ।
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता तन्मय जी 🌻🙏🌻
Deleteसुन्दर भाव....
ReplyDeleteवाह गज़ब।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन को छू गई आपकी अभिव्यक्ति।