18 December, 2020

जाड़े की रात | डॉ शरद सिंह | कविता


जाड़े की रात
      - डॉ शरद सिंह

जाड़े की रात ने
सूरज से मांगी
एक सुबह
घर की दीवारों ने
मांगी अलावों से
गरमाहट
मैंने जो मांगा
अपनेपन में डूबी
इक आहट
तब से वो
मौन ओढ़ बैठा है
मैंने क्या उससे
कुछ ज़्यादा मांग लिया?

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10 comments:

  1. प्रिय अनीता सैनी जी,
    आपने मेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित किया है, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार 🙏🌹🙏

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  2. बहुत शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी 🙏🌹🙏

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  3. सुंदर कोमल भाव

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🌷🙏🌷

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  4. बहुत ही सुंदर भाव, सादर नमस्कार शरद जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी 🌺 🙏🌺

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  5. गुनगुनी धूप सी ... नरम- नरम ।

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    1. शुक्रिया अमृता तन्मय जी 🌻🙏🌻

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  6. वाह गज़ब।
    बहुत सुंदर मन को छू गई आपकी अभिव्यक्ति।

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