Dr (Miss) Sharad Singh |
शंख चटके
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
वादियों-सा दर्द मेरा
शाम से पहले
घिरता अंधेरा।
रोज़ सूरज
घूमता है सिर झुकाए
बंद मुट्ठी में
उजाले को दबाए
टूटता है एक तारा
फूंकने को सिर्फ़
अपना ही बसेरा।
शंख चटके
रूठते हैं सब यहां
जिप्पसियों-सा
मन फिरे जाने कहां
अपशकुन का ज्यों इशारा
स्वस्तिक उल्टा
हवाओं ने उकेरा।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
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Shankh Chatke - Dr (Miss) Sharad Singh, Navgeet, By Ansoo Boond Chuye - Navgeet Sangrah |
अद्भुत। ।।। उत्सुकता जगाती बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteपूरी अंश का एक हिस्सा सा।।।।
इस अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी !!!
Deleteअद्भुत बिम्बों एवं प्रतीकों से युक्त अति सुंदर नवगीत ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार जितेन्द्र माथुर जी !!!
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 24 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteदिव्या अग्रवाल जी,
Deleteमेरे लिए यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरे नवगीत को 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन में' में शामिल किया है।
हार्दिक धन्यवाद आपको!!!
आभारी हूं।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्रिय श्वेता सिन्हा जी,
Deleteमेरा नवगीत 'पांच लिंकों का आनंद' में शामिल के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
ख़ूबसूरत रचना मुग्ध करती हुई - -
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शांतनु सान्याल जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह
ReplyDeleteदिली शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी 🌹🙏🌹
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