अन्नदाता
- डॉ शरद सिंह
ज़िंदगी में आ गया मसला बड़ा है
अन्नदाता आज सड़कों पर खड़ा है
जिस तरह सरहद पे रक्षक जूझते हैं
मुश्क़िलातों से हमेशा वो लड़ा है
मूल्य मिल जाए फसल का, कर्ज़ उतरे
हो फ़सल अच्छी, यही दिल में जड़ा है
ख़ुदकुशी करना पड़े जब खेतिहर को
जान लो, वह दौर बेहद ही कड़ा है
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समसामयिक और सारगर्भित रचना..।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteमूल्य मिल जाए फसल का, कर्ज़ उतरे
ReplyDeleteहो फ़सल अच्छी, यही दिल में जड़ा है
ख़ुदकुशी करना पड़े जब खेतिहर को
जान लो, वह दौर बेहद ही कड़ा है
किसान की वास्तविक जद्दोजहद को प्रस्तुत करती यथार्थ रचना।
सादर।
हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी !!!
Deleteमेरे ब्लॉग्स पर आपका सदैव स्वागत है 💐
इससे ज्यादा दुखद स्थिति और क्या हो सकती है हमारे अन्नदाताओं के लिए । मर्मस्पर्शी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमृता तन्मय जी !!!
Deleteमेरे ब्लॉग्स पर आपका सदैव स्वागत है 💐
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
प्रिय पम्मी सिंह 'तृप्ति' जी,
Deleteयह मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि आपने मेरी ग़ज़ल को ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल किया है।
आपका हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विभा रानी श्रीवास्तव जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत सुन्दर और सटीक
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मनोज कायल जी 🌹🙏🌹
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक सिन्हा जी 🌹🙏🌹
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