कविता
मिलोगे तुम ...
- डॉ. शरद सिंह
मिलोगे तुम मुझे
एक अरसे बाद
यूं ही अचानक
किसी कॉन्फ्रेंस में, सेमिनार में
किसी मॉल में
या किसी मेट्रो में
बेशक़ सोचा था मैंने!
नहीं सोचा था तो ये...
कि मिलोगे तुम
किसी चाय-पार्टी में
मेरी पुरानी सहेली के
नए हमसफ़र बन कर
और मैं देखती रहूंगी
मूक-दर्शक की तरह
अपने अतीत के पन्नों को
फाड़ती हुई ...
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बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteसाधुवाद ❤️🌹❤️
हार्दिक धन्यवाद वर्षा दी 🙏🌹🙏
Deleteआदरणीय/प्रिय,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग "ग़ज़लयात्रा" में आपका स्वागत है। इसमें आप भी शामिल हैं-
https://ghazalyatra.blogspot.com/2020/12/blog-post_70.html?m=1
गंगा | कुछ ग़ज़लें | कुछ शेर | डॉ. वर्षा सिंह
ग़ज़लों में गंगा की उपस्थिति
- डॉ. वर्षा सिंह
मेरी ग़ज़ल को अपनी पोस्ट में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🙏🌹🙏
Deleteबेहतरीन पोस्ट है गंगा पर...
श्रमसाध्य...
हार्दिक साधुवाद 🙏🌹🙏
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-१२-२०२०) को 'मौन के अँधेरे कोने' (चर्चा अंक- ३९१३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आदरणीया अनीता सैनी जी,
Deleteमेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद 🌹🙏🌹
चर्चा मंच के पटल पर मेरी कविता का होना मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है 🙏🙏🙏
बहुत ख़ूब कहा है आपने शरद जी... सुंदर अभिव्यक्ति...।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी !🙏🌹🙏
Deleteअत्यंत ही मार्मिक रचना। यूँ न हो कभी, के हमसफर हो और वो अपना हो भी नहीं ।।।।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पुरुषोत्तम सिन्हा जी 🙏🌹🙏
Deleteजीवन के व्यंग्य ऐसे ही होते हैं.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद प्रतिभा सक्सेना जी 🌹🙏🌹
Deleteलाजवाब।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🙏🌹🙏
Deleteऐसा भी होता है
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🌹🙏🌹
Deleteबेशक ... बेहतरीन !
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