Dr (Miss) Sharad Singh |
नेह पियासी
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
मीलों लम्बी
घिरी उदासी
देह ज़रा-सी।
कुर्सी, मेजें,
घर, दीवारें
सब कुछ तो मृतप्राय लगें
बोझ उठाते
अपनेपन का
पोर-पोर की तनी रगें
बंज़र धरती
नेह पियासी
धार ज़रा-सी।
गलियां देखें
सड़के घूमें
फिर भी चैन न मिल पाए
राह उगा कर
झूठे सपने
नई यात्रा करवाए
रोती आंखें
सपन कपासी
रात ज़रा-सी।
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(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)
गलियां देखें
ReplyDeleteसड़के घूमें
फिर भी चैन न मिल पाए
राह उगा कर
झूठे सपने
नई यात्रा करवाए
रोती आंखें
सपन कपासी
रात ज़रा-सी।
सुंदर रचना।
आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌷🙏🌷
ReplyDeleteबेहद सुन्दर पंक्तियाँ। इक बोझिल सी एकाकी अनंत यात्रा की मार्मिक सी झलक। प्रभावशाली।
ReplyDeleteअनन्त शुभकामनाएँ आदरणीया शरद जी।
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी,
Deleteआपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार एवं धन्यवाद 🌷🙏🌷
आह ! दिल की गहराई में उतर गए ये अशआर ।
ReplyDeleteदिली शुक्रिया जितेन्द्र माथुर जी 🌷🙏🌷
Deleteभावनाओं का अनुपम संगम ...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय सदा जी 🌷🙏🌷
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