21 December, 2020

नेह पियासी | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | नवगीत | संग्रह - आंसू बूंद चुए

Dr (Miss) Sharad Singh

नेह पियासी

   - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


मीलों लम्बी

घिरी उदासी

        देह ज़रा-सी।


कुर्सी, मेजें,

घर, दीवारें

सब कुछ तो मृतप्राय लगें

बोझ उठाते

अपनेपन का

पोर-पोर की तनी रगें


बंज़र धरती

नेह पियासी

       धार ज़रा-सी।


गलियां देखें

सड़के घूमें

फिर भी चैन न मिल पाए

राह उगा कर 

झूठे   सपने

नई यात्रा करवाए


रोती आंखें

सपन कपासी    

रात ज़रा-सी।

          -------

(मेरे नवगीत संग्रह ‘‘आंसू बूंद चुए’’ से)

8 comments:

  1. गलियां देखें
    सड़के घूमें
    फिर भी चैन न मिल पाए
    राह उगा कर
    झूठे सपने
    नई यात्रा करवाए

    रोती आंखें
    सपन कपासी
    रात ज़रा-सी।

    सुंदर रचना।

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  2. आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🌷🙏🌷

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  3. बेहद सुन्दर पंक्तियाँ। इक बोझिल सी एकाकी अनंत यात्रा की मार्मिक सी झलक। प्रभावशाली।
    अनन्त शुभकामनाएँ आदरणीया शरद जी।

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    1. पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी,
      आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार एवं धन्यवाद 🌷🙏🌷

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  4. आह ! दिल की गहराई में उतर गए ये अशआर ।

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    1. दिली शुक्रिया जितेन्द्र माथुर जी 🌷🙏🌷

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  5. भावनाओं का अनुपम संगम ...

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय सदा जी 🌷🙏🌷

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