20 August, 2025

शायरी | तिजारत | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है-
उठाना   गिराना,  गिराना   उठाना
यही   खेल   रचता  रहा है ज़माना
मुहब्बत  के  रिश्ते  तिजारत  हुए हैं
सभी  चाहते  हैं  नफ़ा  ही  कमाना
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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