दीपोत्सव
- डॉ शरद सिंह
दीप पर कत्थक अदाएं
नृत्यरत हैं वर्तिकाएं ।
हर क़दम पर गीत गाती
वायु की शीतल लहरियां
रोशनी के पंख बांधे
झूमती है आज दुनिया
रात भी नवगीत गाए
और तारे गुनगुनाएंं ।
तम-कथाएं कौन बूझे
तारिकाओं की छटा में
घुंघरुओं के स्वर खनकते
ज्योति की जगमग घटा में
सिद्धि की चाहत जगाएं
मंत्र पढ़ती हैं दिशाएं।
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बहुत बहुत सुन्दर रचना |
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