पत्र ग़ैरों के
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- डॉ शरद सिंह
धूल पर
टिकते नहीं हैं
चिन्ह पैरों के ।
उंगलियों के बीच
सूरज को दबाए
रोशनी से
कसमसाती नींद
सिलवट छोड़ जाए
रास्ते बुनते रहे
संदर्भ सैरों के।
मौसमी मुस्कान
होठों पर सहेजे
आंसुओं से
तरबतर रुमाल
किसके पास भेजें
डाकिया
लाया हमेशा
पत्र ग़ैरों के।
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#शरदसिंह #DrSharadSingh #miss_sharad #नवगीत
मौसमी मुस्कान
ReplyDeleteहोठों पर सहेजे
आंसुओं से
तरबतर रुमाल
किसके पास भेजें
डाकिया
लाया हमेशा
पत्र ग़ैरों के।
सुन्दर!
गूढ़ चिंतन शैली को प्रस्तुत करती रचना
हार्दिक आभार सधु चंद्र जी 🙏
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19
ReplyDeleteनवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
प्रिय यशोदा अग्रवाल जी,
Deleteअत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरे नवगीत को 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' में शामिल किया।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
शुभकामनाओं सहित-
डाॅ शरद सिंह
बड़ी ही सारगर्भित रचना...।थोड़े में ही बहुत कुछ कह दिया आपने..।शानदार..।
ReplyDeleteधूल पर
ReplyDeleteटिकते नहीं हैं
चिन्ह पैरों के ।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं चिन्तनपरक सृजन।
सुन्दर लेखन
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
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