'शरद' ने पूछ लिया आज...
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
कभी मिला, न गुमा, उसको ढूंढते क्यों हो ।
खुद अपने आप से, बेवज़ह जूझते क्यों हो ।
ले जा के छोड़ दे यादों के एक जंगल में
उस एक राह पे हरदम ही घूमते क्यों हो ।
ना आएगा वो मनाने किसी भी हालत में
ये जान कर भी हमेशा यूं रूठते क्यों हो ।
वो पंछियों के भरोसे, क्या भाग बांचेगा
जिसे पता ही नहीं उससे पूछते क्यों हो ।
'शरद' ने पूछ लिया आज अपने ख़्वाबों से
ज़रा सी बात पे हर बार टूटते क्यों हो ।
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मित्रो, मेरी यह ग़ज़ल आज 'युवाप्रवर्तक' में प्रकाशित हुई है। इसे आप युवाप्रवर्तक के इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं -
अच्छी ग़ज़ल है शरद जी यह आपकी । अभिनंदन ।
ReplyDeleteजितेन्द्र माथुर जी हार्दिक धन्यवाद 🙏🌹🙏
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 9 नवंबर 2020 को 'उड़ीं किसी की धज्जियाँ बढ़ी किसी की शान' (चर्चा अंक- 3880) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रवीन्द्र सिंह यादव जी,
Deleteआभारी हूं कि आपने चर्चा मंच में मेरी पोस्ट को स्थान दिया। चर्चा मंच के सुधी साहित्यकारों एवं पाठकों से जुड़ना सदा सुखद लगता है।
आपको हार्दिक धन्यवाद 🙏
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🙏
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏
ReplyDeleteबहुत खूब ! बेहतरीन ग़ज़ल शरद जी !
ReplyDeleteवो पंछियों के भरोसे, क्या भाग बांचेगा
ReplyDeleteजिसे पता ही नहीं उससे पूछते क्यों हो । बहुत उम्दा ग़ज़ल - - नमन सह।
वाह !बेहतरीन सराहना से परे दी।
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