Stri Paath - 5 - Stri Prakriti - Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
स्त्रीपाठ - 5
स्त्री प्रकृति
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वृक्ष
जितना ऊपर दिखाई देता है
उतना ही होता है
भूमि में, भीतर
जितनी शाखाएं
उतनी जड़ें
जितने पत्ते
उतनी उपजड़ें
तभी तो थामें रहता है
दृढ़ता से
अपने समूचे आकार को
जो आकार नहीं
उसका परिवार है वस्तुतः
स्त्री भी तो आकार नहीं
परिवार है
चाहे विवाहित हो या अविवाहित
समर्पित अपनों के लिए
दृढ़ता से
ठीक वृक्ष की तरह
वृक्ष और स्त्री
दो पहलू हैं
एक ही प्रकृति के
बिना किसी लिंगभेद के।
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बहुत सटीक तुलना, बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति । अभिनंदन शरद जी ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जितेंद्र माथुर जी 🙏
Deleteहार्दिक धन्यवाद विर्क जी !
ReplyDeleteचर्चा मंच पर अपनी रचना देखना सदैव सुखद लगता है। हार्दिक आभार 🙏
सुन्दर लेखन
ReplyDeleteवाह अद्भुत !
ReplyDeleteसटीक तुलना अप्रतिम।