जाड़ों की रात में ...
- डॉ शरद सिंह
जाड़ों की रात में
लिहाफ़ में दुबके
किसी यादों से गरमाए सपने
नहीं चाहते हैं जागना
इसीलिए तो रातें
लम्बी हो जाती हैं
जाड़ों में।
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कुछ पंक्तियों में काफ़ी कुछ कह गईं आप शरद जी...।सुंदर अभिव्यक्ति..।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🙏🌷🙏
Deleteबहुत ख़ूब शरद जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी 🙏🌷🙏
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