नहीं लौट पाता प्रेम
- डॉ शरद सिंह
चाहे धूमकेतु हो
या कोई नक्षत्र
पृथ्वी के पास से
गुज़र जाता है
बिना टकराए
बिना छुए पृथ्वी को
छोड़ जाता है अनुमान
कि हज़ारों साल बाद
लौटेगा वह
पृथ्वी के पास
एक बार फिर
एक नक्षत्र
गुज़रा था
मेरे भी क़रीब से
मेरी परिधि से दूर
पर
बहुत पास से मेरे
उन दिनों
उसके होने का अहसास
उठाता रहा
भावनाओं के ज्वार-भाटे
समय-चक्र के साथ
दूर, दूर, दूर
दूर होता चला गया वह
हज़ारों साल में सही
नक्षत्र लौटता है
पृथ्वी के लिए
किन्तु
नहीं लौट पाता प्रेम
प्रेम के लिए
सशरीर, साक्षात
एक बार फिर
साथ देने को
प्रतीक्षारत
पृथ्वी
प्रतीक्षारत
मैं
पृथ्वी रहेगी
और हज़ारों साल अभी
पर मैं नहीं
लौटेगा नक्षत्र
पर
वह नहीं।
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सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (02-07-2021) को "गठजोड़" (चर्चा अंक- 4113 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
प्रेम का बहुत ही सुंदर शब्द चित्रण।
ReplyDeleteसादर
अपनों का विरह भी मन में इंतजार तक पहुंच जाता है नक्षत्र नहीं पहुँचता हाँ वह प्रेम को नहीं समझता पर अपने दूर जा ही नहीं सकते वे प्रेम के धागों में बँधे आसपास ही होते हैं हमारे...सशरीर नहीं पर आत्मिक रूप में ..मन से मन तक।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteवाह डॉ. शरद, बहुत ही सुन्दर तुलनात्मक स्वरूप दिया प्रेम को आपने इस कविता में और कविता का समापन भी बहुत सुंदरता से किया है!
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