24 July, 2021

अनर्थ का अर्थ | कविता | डॉ शरद सिंह

अनर्थ का अर्थ
       - डॉ शरद सिंह

रीते हुए
औंधे रखे
घड़े की तरह
शुष्क
रिक्त 
दिन 
बजते हैं
शोक डूबे
अनहद नाद की तरह

व्याकुलता
आदियोगी-सी
करने लगती है तांडव
होने लगता है विध्वंस
दरकने लगती हैं भावनाएं
ढहने लगते हैं
खंडहर 
सपनों के,
बज उठती हैं धड़कने
डमरू की तरह,
विनाश का विन्यास
रचने लगता है
उल्टा स्वस्तिक

देखो तो,
अनर्थ का अर्थ
बांचते
काटना है
शेष जीवन
ऋग्वेद के 
फटे हुए 
पन्ने की तरह।
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6 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२५-०७-२०२१) को
    'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक-४१३६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

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  2. देखो तो,
    अनर्थ का अर्थ
    बांचते
    काटना है
    शेष जीवन
    ऋग्वेद के
    फटे हुए
    पन्ने की तरह।
    मर्मस्पर्शी सृजन ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

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  3. ऋग वेद का फटा पन्ना ।क्या खूब लिखा है ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुनीता अग्रवाल नेह जी 🙏

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