लड़कियां किसम-किसम की
- डॉ शरद सिंह
मूक दर्शक से हम
देखते हैं उन्हें
एक तारीख़
एक दिन
एक समय में -
एक लड़की
रचती है इतिहास
ओलंपिक में
एक लड़की
जोहती है बाट
सज़ा सुनाए जाने की
अपने बलात्कारी को
एक लड़की
होती है शिकार
बलात्कार का
एक लड़की
करती है सर्फिंग
इंटरनेट पर
एक लड़की
होती है ब्लैकमेल
प्रेम-डूबे वीडियो की
अपलोडिंग पर
एक लड़की
होती है भर्ती
पुलिस में
एक लड़की
बेचती है देह
रेडलाईट एरिया में
एक लड़की
करती है संघर्ष
जीने का
एक लड़की
ढूंढती है तरीक़े
आत्महत्या के
एक लड़की
ख़ुश है अपने
लड़की होने पर
एक लड़की
करती है विलाप-
'अगले जनम मोहे
बिटिया न कीजो'
देखो तो,
इस दुनिया में
कितनी
किसम-किसम की हैं
लड़कियां,
समाज के सांचे
और
ढांचे के अनुरूप
यानी,
लड़कियां
हमेशा
एक-सी नहीं रह पाती
हमारे बीच,
एक ही समय में।
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बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteलड़कियों के अनेक रूपों से अवगत कराया ।
हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🙏
Deleteभिन्न भिन्न तरह को लड़कियां,सच कहा आपने हर लड़की इस समाज में अलग है,सबका अलग आसमान,सबकी अलग पहचान,किसी को मान,किसी को अपमान,बहुत खूब ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🙏
Deleteमेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना भारद्वाज जी 🙏
ReplyDeleteएक लड़की के अनेक पहलुओं को बाखूबी रचना के ज़रिये रक्खा है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
हार्दिक धन्यवाद दिगंबर नासवा जी 🙏
Deleteलब्बोलुआब तो इसी में छुपा है शरद जी कि ---यानी,
ReplyDeleteलड़कियां
हमेशा
एक-सी नहीं रह पाती
हमारे बीच,
एक ही समय में" सत्य और कटुसत्य
बहुत-बहुत धन्यवाद अलकनंदा सिंह जी 🙏
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सुमन जी 🙏
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🙏
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