02 July, 2021

सूखे हुए फूल के साथ | कविता | डॉ शरद सिंह

सूखे हुए फूल के साथ
    - डॉ शरद सिंह

पुस्तक के पीले पन्नों की
क़ब्र में सोए हुए 
फूल को 
बहा कर नदी में
कर दूंगी
तर्पण,
कर दूंगी मुक्त
अपने अतीत के
सुनहरे सपनों को

सोचा तो कई बार
कर न सकी

खोलते ही पुस्तक -
वह चपटाया फूल
आज भी
खिल उठता है
लगता है महकने
करने लगता है बातें
चूम लेता है उंगलियां
घबरा कर खींच लेती हूं हाथ
छूट जाता है फूल
जहां के तहां

टूटते ही दिवास्वप्न
लौटती हूं वर्तमान में

गोया
थार के मरुथल में
रेत के टिब्बे
लेने लगते हैं करवट
चलने लगती हैं 
तपती हवाएं
झुलसने लगती है देह
बारिश में भी
धधकती हैं लपटें

कितना मुश्क़िल है
अतीत से बचाना
वर्तमान को
और तय करना
भविष्य की 
अज्ञात यात्रा
किसी सूखे हुए
फूल के साथ।
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#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry 

5 comments:

  1. सच..
    अतीत वर्तमान में आ जाता है आतिशें घोलने।
    कोई बेक़रारी सी रचना। उम्दा।

    नई पोस्ट 👉🏼 पुलिस के सिपाही से by पाश
    ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे.

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    1. हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी 🙏

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
    'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार प्रिय अनिता सैनी जी 🙏

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  3. भावपूर्ण रचना! मन के एहसासों का इंद्रजाल।
    सुंदर सृजन।

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