16 July, 2021

अनर्थ का अर्थ | कविता | डॉ शरद सिंह

अनर्थ का अर्थ
       - डॉ शरद सिंह

रीते हुए
औंधे रखे
घड़े की तरह
शुष्क
रिक्त 
दिन 
बजते हैं
शोक डूबे
अनहद नाद की तरह

व्याकुलता
आदियोगी-सी
करने लगती है तांडव
होने लगता है विध्वंस
दरकने लगती हैं भावनाएं
ढहने लगते हैं
खंडहर 
सपनों के,
बज उठती हैं धड़कने
डमरू की तरह,
विनाश का विन्यास
रचने लगता है
उल्टा स्वस्तिक

देखो तो,
अनर्थ का अर्थ
बांचते
काटना है
शेष जीवन
ऋग्वेद के 
फटे हुए 
पन्ने की तरह।
   -----------

#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry 

3 comments:

  1. अर्थ का अनर्थ आज के जीवन की त्रासदी है …
    गहरी रचना है …

    ReplyDelete
  2. ओह , कितनी व्यथा ..... जितनीं भी निकालो कम नहीं होती । मर्मस्पर्शी ।

    ReplyDelete
  3. वाह , प्रभावशाली !

    ReplyDelete