- डॉ शरद सिंह
पुराने अख़बार के
आख़िरी पन्ने के
निपट कोने में
छपे समाचार की भांति
रविवार का एक दिन और
तहा कर रख दिया जाएगा
सिरे से भुलाकर
इस डिज़िटल युग में
परन्तु मुझे नहीं भूलते
वे रविवार
जो कभी थे उत्सव की तरह
ब्लैक एंड व्हाईट टीवी में
दूरदर्शन पर प्रदर्शित
दोपहर की
फीचर फ़िल्म के साथ,
हम पॉपकॉर्न नहीं
रखते थे आलू चिप्स
ताज़ा तल कर
और याद करते
हर बार
वे एक-दो फीचर फ़िल्म्स
जो देखी थीं
पड़ोसी की बड़ी टीवी में
उनकी सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स की
धमक के साथ
वे रविवार
आज भी लगते हैं उत्सव-से
ओटीटी प्लेटफार्म की
उम्दा टेक्नोलॉजी के बावज़ूद
प्यारा-सा वह बुद्धू बक्सा
आज भी है गुदगुदाता
जब होते थे
परिवार के सारे सदस्य
कुछ घंटों के लिए ही सही
एक साथ
एक उत्सव की तरह
वैश्विक बाज़ारवाद में
जन्मे युवा
नहीं जान पाएंगे
इस उत्सव के बारे में
क्योंकि बाज़ार
सहेजता है
उन्हीं उत्सवों को
जो हों बिकाऊ
और उठा सकें
तेजी से
सेंसेक्स की लकीर को।
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ऐसे उत्सव अब कहाँ । अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
मेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार रवींद्र सिंह यादव जी 🌹🙏🌹
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
प्रिय संगीता स्वरूप जी आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद कि आपने मेरी कविता "पांच लिंकों का आनंद" में शामिल की है 🌹🙏🌹
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹
Deleteसच कहा आपने शरद जी आज के बच्चे और युवा हमारी स्मृतियों की गंध नहीं महसूस सकते हैं।
ReplyDeleteइन्हें समझाना होगा कि डिजिटल युग सुख सुविधा और विकास की नयी परिभाषा भले गढ़ ले किंतु अपनों का साथ और अपनापन जीवन की अमूल्य निधि है।
सस्नेह।
यही यथार्थ है आज का...
Deleteश्वेता सिन्हा जी हार्दिक धन्यवाद आपको 🌹🙏🌹
वैश्विक बाज़ारवाद में
ReplyDeleteजन्मे युवा
नहीं जान पाएंगे
इस उत्सव के बारे में
क्योंकि बाज़ार
सहेजता है
उन्हीं उत्सवों को
जो हों बिकाऊ
सुंदर रचना
सादर..
बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह!खूबसूरत सृजन । सही है ,ऐसे उत्सव अब कहाँँ?
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी 🌹🙏🌹
Deleteसमय के साथ-साथ, देखते-देखते कितना कुछ बदल गया और बदलता जा रहा है !
ReplyDeleteबेशक गगन शर्मा जी...
Deleteहार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
सही कहा आपने.. पर वो इक दौर था ये भी इक दौर है।
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद पम्मी सिंह तृप्ति जी 🌹🙏🌹
Deleteवैश्विक बाज़ारवाद में
ReplyDeleteजन्मे युवा
नहीं जान पाएंगे
इस उत्सव के बारे में
क्योंकि बाज़ार
सहेजता है
उन्हीं उत्सवों को
जो हों बिकाऊ
और उठा सकें
तेजी से
सेंसेक्स की लकीर को।---बहुत खूब बधाई आपको।
हार्दिक धन्यवाद संदीप कुमार शर्मा जी 🌹🙏🌹
Deleteवैश्विक बाज़ारवाद में
ReplyDeleteजन्मे युवा
नहीं जान पाएंगे
इस उत्सव के बारे में
क्योंकि बाज़ार
सहेजता है
उन्हीं उत्सवों को
जो हों बिकाऊ
और उठा सकें
तेजी से
सेंसेक्स की लकीर को।
बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
हार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🌹🙏🌹
Deleteसच में !!!
ReplyDeleteजब होते थे
परिवार के सारे सदस्य
कुछ घंटों के लिए ही सही
एक साथ
एक उत्सव की तरह....
ऐसा लग रहा है जैसे पिछले जन्म की बातें हों ये सब। रहा सहा कोरोना ने चौपट कर दिया।
जी हां मीना शर्मा जी ...
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपको 🌹🙏🌹
एकदम सही कहा आपने...उन पलों को जिन्होंने जिया है उनका महत्व वे ही जानते हैं...
ReplyDeleteआजकल तो तन्हाई रास आ गयी है सबको...मोबाइल हाथ में हो बस और किसी की जरूरत नहीं।
बहुत ही सुन्दर सृजन
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत कुछ याद दिला दई आपकी रचना 😊
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद उषा किरण जी 🙏
Deleteसच है आने वाली पीढ़ीयां कहां उस उत्कंठा, प्रतीक्षा को अनुभव कर पाएंगी । जो हमारी पीढ़ी लेकर तृप्त हुई। कितने सुहाने थे वो रविवार के उत्सव। बहुत अच्छा लिखा आपने। यादों से जोड़ती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेणु जी 🙏
Deleteआदरणीया मैम, अत्यंत सुंदर भावपूर्ण रचना । आपकी रचना में जिस रविवरीय उत्सव का वर्णन किया है , उसके बारे में माँ से बहुत सुनती हूँ । उन्हें आपकी रचना पढ़ कर भी सुनाई । उन्हें बहुत अच्छी लगी । आज सच में उस आनंद की केवल कल्पना ही कि जा सकती है और मैं तो उस ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी की कल्पना भी नहीं कर सकती । हाँ, यह सच है कि इस भौतिकवाद के युग में हर चीज का मूल्य पैसों से आँका जा रहा है पर परिवार के साथ समय बिताने का सुख आज भी अनमोल है और सदा रहेगा ।
ReplyDeleteहृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम
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