04 July, 2021

रविवारीय-उत्सव | कविता | डॉ शरद सिंह

रविवारीय-उत्सव
             - डॉ शरद सिंह

पुराने अख़बार के
आख़िरी पन्ने के
निपट कोने में
छपे समाचार की भांति
रविवार का एक दिन और 
तहा कर रख दिया जाएगा
सिरे से भुलाकर
इस डिज़िटल युग में

परन्तु मुझे नहीं भूलते
वे रविवार
जो कभी थे उत्सव की तरह
ब्लैक एंड व्हाईट टीवी में
दूरदर्शन पर प्रदर्शित
दोपहर की
फीचर फ़िल्म के साथ,
हम पॉपकॉर्न नहीं
रखते थे आलू चिप्स
ताज़ा तल कर
और याद करते
हर बार
वे एक-दो फीचर फ़िल्म्स
जो देखी थीं
पड़ोसी की बड़ी टीवी में
उनकी सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स की
धमक के साथ

वे रविवार 
आज भी लगते हैं उत्सव-से
ओटीटी प्लेटफार्म की
उम्दा टेक्नोलॉजी के बावज़ूद
प्यारा-सा वह बुद्धू बक्सा
आज भी है गुदगुदाता
जब होते थे
परिवार के सारे सदस्य
कुछ घंटों के लिए ही सही
एक साथ
एक उत्सव की तरह

वैश्विक बाज़ारवाद में
जन्मे युवा
नहीं जान पाएंगे
इस उत्सव के बारे में
क्योंकि बाज़ार 
सहेजता है 
उन्हीं उत्सवों को
जो हों बिकाऊ
और उठा सकें
तेजी से
सेंसेक्स की लकीर को।
     -------------
#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry 

32 comments:

  1. ऐसे उत्सव अब कहाँ । अच्छी प्रस्तुति।

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता स्वरूप जी 🌹🙏🌹

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. मेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार रवींद्र सिंह यादव जी 🌹🙏🌹

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. प्रिय संगीता स्वरूप जी आपका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद कि आपने मेरी कविता "पांच लिंकों का आनंद" में शामिल की है 🌹🙏🌹

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता सैनी जी 🌹🙏🌹

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  5. सच कहा आपने शरद जी आज के बच्चे और युवा हमारी स्मृतियों की गंध नहीं महसूस सकते हैं।
    इन्हें समझाना होगा कि डिजिटल युग सुख सुविधा और विकास की नयी परिभाषा भले गढ़ ले किंतु अपनों का साथ और अपनापन जीवन की अमूल्य निधि है।

    सस्नेह।

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    1. यही यथार्थ है आज का...

      श्वेता सिन्हा जी हार्दिक धन्यवाद आपको 🌹🙏🌹

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  6. वैश्विक बाज़ारवाद में
    जन्मे युवा
    नहीं जान पाएंगे
    इस उत्सव के बारे में
    क्योंकि बाज़ार
    सहेजता है
    उन्हीं उत्सवों को
    जो हों बिकाऊ
    सुंदर रचना
    सादर..

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी 🌹🙏🌹

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  7. वाह!खूबसूरत सृजन । सही है ,ऐसे उत्सव अब कहाँँ?

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    1. हार्दिक धन्यवाद शुभा जी 🌹🙏🌹

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  8. समय के साथ-साथ, देखते-देखते कितना कुछ बदल गया और बदलता जा रहा है !

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    1. बेशक गगन शर्मा जी...

      हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹

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  9. सही कहा आपने.. पर वो इक दौर था ये भी इक दौर है।
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद पम्मी सिंह तृप्ति जी 🌹🙏🌹

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  10. वैश्विक बाज़ारवाद में
    जन्मे युवा
    नहीं जान पाएंगे
    इस उत्सव के बारे में
    क्योंकि बाज़ार
    सहेजता है
    उन्हीं उत्सवों को
    जो हों बिकाऊ
    और उठा सकें
    तेजी से
    सेंसेक्स की लकीर को।---बहुत खूब बधाई आपको।

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद संदीप कुमार शर्मा जी 🌹🙏🌹

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  11. वैश्विक बाज़ारवाद में
    जन्मे युवा
    नहीं जान पाएंगे
    इस उत्सव के बारे में
    क्योंकि बाज़ार
    सहेजता है
    उन्हीं उत्सवों को
    जो हों बिकाऊ
    और उठा सकें
    तेजी से
    सेंसेक्स की लकीर को।
    बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा चौहान जी 🌹🙏🌹

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  12. सच में !!!
    जब होते थे
    परिवार के सारे सदस्य
    कुछ घंटों के लिए ही सही
    एक साथ
    एक उत्सव की तरह....
    ऐसा लग रहा है जैसे पिछले जन्म की बातें हों ये सब। रहा सहा कोरोना ने चौपट कर दिया।

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    1. जी हां मीना शर्मा जी ...
      हार्दिक धन्यवाद आपको 🌹🙏🌹

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  13. एकदम सही कहा आपने...उन पलों को जिन्होंने जिया है उनका महत्व वे ही जानते हैं...
    आजकल तो तन्हाई रास आ गयी है सबको...मोबाइल हाथ में हो बस और किसी की जरूरत नहीं।
    बहुत ही सुन्दर सृजन

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी 🌹🙏🌹

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  14. बहुत कुछ याद दिला दई आपकी रचना 😊

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद उषा किरण जी 🙏

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  15. सच है आने वाली पीढ़ीयां कहां उस उत्कंठा, प्रतीक्षा को अनुभव कर पाएंगी । जो हमारी पीढ़ी लेकर तृप्त हुई। कितने सुहाने थे वो रविवार के उत्सव। बहुत अच्छा लिखा आपने। यादों से जोड़ती रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. हार्दिक धन्यवाद रेणु जी 🙏

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  16. आदरणीया मैम, अत्यंत सुंदर भावपूर्ण रचना । आपकी रचना में जिस रविवरीय उत्सव का वर्णन किया है , उसके बारे में माँ से बहुत सुनती हूँ । उन्हें आपकी रचना पढ़ कर भी सुनाई । उन्हें बहुत अच्छी लगी । आज सच में उस आनंद की केवल कल्पना ही कि जा सकती है और मैं तो उस ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी की कल्पना भी नहीं कर सकती । हाँ, यह सच है कि इस भौतिकवाद के युग में हर चीज का मूल्य पैसों से आँका जा रहा है पर परिवार के साथ समय बिताने का सुख आज भी अनमोल है और सदा रहेगा ।

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  17. हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम

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