आज पूरे दो माह हो गए वर्षा दीदी तुमको मुझसे हमेशा के लिए दूर गए... जहां भी रहो, तुम्हें सारी खुशियां मिलें...वो भी जो इस जीवन में नहीं मिलीं... हर पल तुम्हें याद करती हूं... कठिन है तुम्हारे बिना जीना...
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वो अब नहीं
- डॉ शरद सिंह
जिसको समझ थी
मेरे दुख-दर्द की
वो अब नहीं
जिसको क़द्र थी
मेरी भावनाओं की
वो अब नहीं
जिसके
बह निकलते थे आंसू
मुझे ठोकर लगने पर
वो अब नहीं
जिसके दिल में था
मुझे दुनिया से
बचा लेने का जज़्बा
वो अब नहीं
जिसका प्यार
मेरी ताकत थी
हौसला थी
हिम्मत थी
वो अब नहीं
कोई नहीं
जो उसकी तरह
समझ सके मुझे
मैं थी उसकी "बेटू"
और वो मेरी "दीदू"
माफ़ करना "दीदू"
तुम्हारे बिना
आज भी ज़िन्दा हूं
तुम्हें
न बचा पाने पर
ख़ुद से शर्मिंदा हूं
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शर्मिंदा न होइए शरद जी क्योंकि ज़िन्दगी और मौत हमारे हाथ में नहीं। मैं आपके जज़्बात को, आपके दिल में उमड़ते दर्द को महसूस कर सकता हूँ। उनके जाने से जो ख़ालीपन आया है, उसे भरा नहीं जा सकता। लेकिन हौसला रखिए।
ReplyDeleteप्रिय शरद जी, आपके लिखे शोकगीत मन को दहला कर आंखों में आसूं भर देते हैं। सच कहूं तो मैं निशब्द हूं आपके लेखन पर। पीड़ा की अविरल धारा बह रही है शब्दों के रुप में। सबसे अनमोल धन होतें है हमारे अपने और जब हम उन्हें ही खो देते हैं तो खोने के लिए कुछ नहीं बचता। वर्षा जी जैसी परम स्नेही और मां तुल्य बहन का खोना आपके लिए कितना मर्मान्तक और असहनीय रहा होगा इसका एहसास समूचे ब्लॉग जगत को है। और आप शर्मिंदा होने की ग्लानि भीतर ना रखें। किसी को बचाने, खोने का अधिकार यदि प्रकृति ने दिया होता तो इन्सान भगवान होता। निशब्द और व्यथित हूं इस मार्मिक रचना पर!!!
ReplyDeleteशरद जी ,
ReplyDeleteहर पल आप रहती हैं अपनी दीदू के साथ , फिर भी उनका अपने पास न पाना आपको पीड़ा देता है । यूँ सब कुछ वक्त के ही हाथ है । अपना ख्याल रखें । बहुत से स्नेह आपको पहुँचे।
नि:शब्द!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteनम आँखों के सिवा और कुछ नहीं है इस रचना पर कहने के लिए दीदी। अपना ध्यान रखिए।
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